शनिवार, 30 मई 2009

वे फक्कड थे ! .... कबीर थे ! ....

वे नहीं रहे
तब हमने उनके बारे में
जाना

वे सूर्य को दिये जाने वाले अर्ध्य का
पवित्र जल थे
बरगद की छाँह थे
मंदिर की सीढ़ियाँ थे

खेत में लगातार जुते हुए बैल थे
संघर्ष के बीच
जिजीविषा को बचाने की इच्छाओं की

प्रतिमूर्ति थे

वे राष्ट्र के निर्माण की कथा थे


वे जनपद में पहली लालटेन लेकर आये थे
यह सिर्फ किवदंती ही नहीं है

जब कई स्त्रियों को रखने की प्रवृति

आदमी की दबंगता में शुमार की जाती थी

उन्होंने बच्चों के लिये स्कूल
गांव के लिये अस्पताल
भूमिहीनों के लिये ज़मीन
बेरोजगारों के लिये चरखे करघे की पहल की

उनके पास पराघीन देश की कई कटु
और मधुर स्मृतियाँ थीं

होश सम्भालने से लेकर
अपने जीवन का एक तिहाई
देश को स्वाधीन करने में होम कर दिया
यह आजीवन संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पहलू था
जिसे उन्होंने कभी बातचीत में

तकिया कलाम नहीं बनाया


अलबत्ता अंतिम दौर की लड़ाई में
जर्जर - रूग्णकाय
शून्य में कुछ इस तरह देखा करते
जैसे कोई अपने बनाये हुए घरोंदे को
टूटते हुए देख रहा हो

यह सच है
कि पेंशन के लिये वे कभी परेशान नहीं दिखे
पर आजादी के बाद की पीढ़ी ने उनके लिये
चिन्ता प्रकट की
उन्हें उनकी भौतिक समृद्वि पर

असंतोष था
उनकी नज़र में वे अव्यावहारिक थे

उनके पास जीवन के अंतिम क्षणों में

कोई सुन्दर मकान नहीं था

आखि़री सांस तक की लड़ाई के बाद भी

कोई बैंक बैलेंस नहीं था


जो उनके लिये चिन्तित दिखे

वे वक्त का मिज़ाज समझने वाले

सफल नज़रिया रखने वाले

दुनियादार लोग थे

उनके सधे अनुभव में उन्हें

समय के साथ चलना था

वे फक्कड़ थे ! कबीर थे !
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे.

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पूज्य पिता श्री श्रीकृष्ण प्रसाद
की स्मृति में
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झारखण्ड राज्य, संथाल परगना के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी . कार्य-क्षेत्र - मुख्यतः झारखण्ड-बिहार, उत्तर प्रदेश .
महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं - प्रताप, वीरभारत, आज, अमृत प्रभात,
गाधी संदेश, गाधी मार्ग, अम्बर इत्यादि से सम्बद्ध , सम्पादक -लेखक जिनका सम्पूर्ण जीवन निःस्वार्थ सेवा और त्याग में व्यतीत हुआ जिन्हें अपने विज्ञापन में कोई रुचि नहीं थी .