शुक्रवार, 26 जून 2009

सुबह




सूर्य का गोला आसमान पे उजले रंग से लिखता है -
सुबह
और चमक उठती हैं इस धरती पर जल की तरंगें
जीवन के रंगों से भर कर

तरोताजा हो उठती है हवा किरणों से नहा-धोकर
हल-बैल लिये किसान उतर पड़ते हैं खेतों में
नई उमंग के साथ नई फसल बोने को

निकल पड़ती हैं चींटियां अपने बिलों से कतारबद्ध
अपने गंतव्य की ओर ....और
परिन्दे कभी नहीं ठहरते अपने घोंसलों में
सुबह होने के बाद

.......लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!

बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद

इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.....!!


................................................

चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
....................................................................