गुरुवार, 15 जनवरी 2009

अधूरा मकान



उस रास्ते से गुज़रते हुए
अक्सर दिखाई दे जाता था
वर्षों से अधूरा बना पड़ा वह मकान

वह अधूरा था
और बिरादरी से अलग कर दिये आदमी
की तरह दिखता था

उस पर छत नहीं डाली गयी थी
कई बरसातों के ज़ख़्म उस पर दिखते थे
वह हारे हुए जुआड़ी की तरह खड़ा था
उसमें एक टूटे हुए आदमी की परछाँई थी

हर अधूरे बने मकान में एक अधूरी कथा की
गूँज होती है
कोई घर यूँ ही नहीं छूट जाता अधूरा
कोई ज़मीन यूँ ही नहीं रह जाती बाँझ

उस अधूरे बने पड़े मकान में
एक सपने के पूरा होते -होते
उसके धूल में मिल जाने की आह थी
अभाव का रुदन था
उसके खालीपन में एक चूके हुए आदमी की पीड़ा का
मर्सिया था

एक ऐसी ज़मीन जिसे आँगन बनना था
जिसमें धूप आनी थी
जिसकी चारदीवारी के भीतर नम हो आये
कपड़ों को सूखना था
सूर्य को अर्ध्य देती स्त्री की उपस्थिति से
गौरवान्वित होना था

अधूरे मकान का एहसास मुझे सपने में भी
डरा देता है
उसे अनदेखा करने की कोशिश में भर कर
उस रास्ते से गुज़रती हूँ
पर जानती हूँ
अधूरा मकान सिर्फ़ अधूरा ही नहीं होता
अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है ।

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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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46 टिप्‍पणियां:

अमृत कुमार तिवारी ने कहा…

"अधूरा मकान सिर्फ़ अधूरा ही नहीं होता
अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है "
दिल को छू जाने वाली रचना...बेहद ही मर्म स्पर्शी...

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

वाकई साहित्यकार यदि सोच ले तो वह कहीं से भी विषय उठा सकता है.
सुंदर अभिव्यक्ति.
बधाई संध्या जी

अच्छी पंक्तियाँ >>>>
अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है ।
-विजय

सुनील मंथन शर्मा ने कहा…

ruh kpan dene wali rachna.

पुरुषोत्तम कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी कविता। ..
टिप्पणी करने का दायित्व तो इतने से निभ जाता है। पर इतना भर कहकर मन नहीं मानता। आपकी कविताओं को पढ़कर मैं यह सोचने लगा कि क्या सचमुच कविता इतनी अच्छी होती है। और देखिए लोगों के ब्लागिंग के शौक के चलते, अच्छी कविताएं भी कितनी आसानी से उपलब्ध हैं।

Vinay ने कहा…

दिल को छू लेने वाली रचना...

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

Udan Tashtari ने कहा…

उस रास्ते से गुज़रते हुए
अक्सर दिखाई दे जाता था
वर्षों से अधूरा बना पड़ा वह मकान


-क्या बात है-बहुत गहरे उतर गई. मैं अहसास सकता हूँ इसे अक्षरशः.

बहुत उम्दा.

Unknown ने कहा…

bahut sundar rachna.....
aapne is kavita se bahut kuch keh diya.....

मीत ने कहा…

अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है ।
orsam...
keep it up...
its really true...
-MeeT

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ ने कहा…

अत्यंत मर्म स्पर्शी रचना.
एक-एक पंक्ति दिलो-दिमाग में उतरती चली जाती है...
बधाई !

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुंदर लगी आपकी यह रचना

विधुल्लता ने कहा…

उस रास्ते से गुज़रते हुए
अक्सर दिखाई दे जाता था
वर्षों से अधूरा बना पड़ा वह मकान

sundar

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही गहरी बात कह दी आप ने इस कविता मे, वेसे तो हम सभी अधुरे ही है कही ना कही से... कोई आत्मा से, कोई दिल से, कोई नीयत से, कोई अपनी जिन्दगी से... तो कोई सपनो से...
धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

Zeevan ki katu paristhitiyan aur aam aadmi ke sambandh ko bakhubi bayan kiya aapne.Sadhuvad.

Dr. Ajay Shukla

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

Sandhya ji,
Bahut achhe shabdon men ek nimn madhya vargeeya parivar kee peeda ko apne roopayit kiya hai.darasal koi makan .......ghar tabhee ban pata hai jab usmen ek parivar rahe.Aur jab makan ..poora hee naheen ho paya to uske ghar na ban pane kee pooree vytha ,peeda hai...adhoora Makan.
Hemant Kumar

Pawan Nishant ने कहा…

अभी रात के 1.20 बजे हैं। मेरी अपने एक दोस्त से चैटिंग चल रही थी। वह लंदन में है और म्यूजिक पर रॉयल कालेज आफ म्यूजिक का स्कालर है। मैंने चैटिंग के दौरान आपकी कविता पढ़ी और उसे गूगल टॉक पर पोस्ट कर दी। जो टिप्पणी कर रहा हूं, मेरी नहीं, उसकी है। उसने कहा-संध्या जी हम म्यूजिशयन की तरह वर्णों में सोचती हैं, शब्दों में नहीं। कविता में मुझे लय और दर्द नजर आ रहा है, जो कंठ से बाहर आने को बेताब है।
मेरा कमेंट यह है-ऐसा मकान रास्ते में बार-बार दिखे तो अतीत को उधेड़ देता है, पर सपनों में आने लगे तो पूरे दिन के एक-एक पल को अलग करने लगता है।

राजीव करूणानिधि ने कहा…

इसी ख्याल के आबो हवा में जीते हैं. गज़ब की भावपूर्ण कविता है आपकी. शुक्रिया आपका. बहुत दिनों बाद ऐसी कविता पढने को मिली.

डॉ .अनुराग ने कहा…

एक ऐसी ज़मीन जिसे आँगन बनना था
जिसमें धूप आनी थी
जिसकी चारदीवारी के भीतर नम हो आये
कपड़ों को सूखना था
सूर्य को अर्ध्य देती स्त्री की उपस्थिति से
गौरवान्वित होना था
bahut hi bhavurn kavita hai...vakai...aor iski aakhiri panktiya jaise iska saar hai aor shayad is kavita ki aatma bhi...

अधूरा मकान सिर्फ़ अधूरा ही नहीं होता
अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है "
bahut khoob.

अमृत कुमार तिवारी ने कहा…

एक पंक्ति दिखाई दी..अधूरा मकान..लेकिन ज्यों मैंने उस पर क्लिक किया, मैने पाया की मैं असीम गहराई में हूं..जहां पर सिर्फ भावनाओं का ज्वार है जिसमें अधूरा मकान ही नहीं, गोस्त बस..दोराहे पर लड़कियां आदि हैं। आपकी रचनाओं को पढ़ कर.महादेवी वर्मा याद आती हैं। आपकी अगली रचना की प्रतिक्षा रहेगीं...
साथ ही आपका मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार.

Reetesh Gupta ने कहा…

हर अधूरे बने मकान में एक अधूरी कथा की
गूँज होती है
कोई घर यूँ ही नहीं छूट जाता अधूरा
कोई ज़मीन यूँ ही नहीं रह जाती बाँझ

सुंदर और भावुक प्रस्तुति ..अच्छा लगा पढ़कर

बेनामी ने कहा…

Bahut hi badhiya, aapne toh adhurepan ke dard ka ehsaas kara diya.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

बेहतरीन कविता के लिये संध्या जी आप को बधाई

Ashok Kumar pandey ने कहा…

एक और अच्छी कविता।
अधूरा मक़ान अधूरी कविता की तरह होता है शायद्…सम्भावनाये हज़ार पर उतनी ही उदासी भी।
अगर बुरा ना माने तो जुआडी नही जुआरी

sandhyagupta ने कहा…

अशोक जी,
कविता आपको पसंद आई यह जान कर खुशी हुई।

मूल शब्द 'जुआड़ी' ही है। 'जुआरी' तदभव है।

Atul Sharma ने कहा…

एक अच्‍छी कविता के लिए बधाई।

कडुवासच ने कहा…

अधूरा मकान सिर्फ़ अधूरा ही नहीं होता
अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है ।
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।

Sushil Kumar ने कहा…

‘अधूरा मकान’कविता संध्या गुप्ता की बेहतरीन समकालीन कविताओं में से एक है। इसे पढ़कर मन में एक सिहरन-सी पैदा होती है। आदमी के सपने के साथ उसके अधूरे पड़े मकान जुड़े होते हैं,अधूरा मकान उसके लिये प्रयुक्त कितना सार्थक बिम्ब है यहाँ, जिसमें जद्दोजहद की जिन्दगी जीते हुये उस आदमी की व्यथा को लक्ष्य किया गया है जो आज जीने के संघर्ष में इतना शामिल है अपने वजूद को मात्र बचाने के लिये ही,अपने सामीप्य और अंतर के द्वंद्व से इतना पेशोपेश कि,उसके जीवन के सब सपने धेरे के धरे रह जाते हैं!यह कविता पढ़ते हुये मुझे पाश की कविता‘सबसे खतरनाक़ होता है सपनों का मर जाना’ की सहसा याद हो आती है। कविता को इस तरह बुना गया है शिल्प में कि कविता सहज ही आदमी मानस-पटल पर गहरा असर छोड़ती है। अनेक साधुवाद गुप्ता जी को इस अन्यतम कविता के लिये। उनकी कविता का लय भी यहाँ तारीफ़ के काबिल है।

Manuj Mehta ने कहा…

वाह बहुत खूब. आपके ब्लॉग पर आने पर हर बार एक नया अनुभव होता है. आपकी लेखनी यूँ ही जादू बिखेरती रहे.

Unknown ने कहा…

waah achha likha aapne lakin....manusy ka kaam hai adhure kam pure karne.....


Jai Ho Maglmay Ho....

Bahadur Patel ने कहा…

उस अधूरे बने पड़े मकान में
एक सपने के पूरा होते -होते
उसके धूल में मिल जाने की आह थी
अभाव का रुदन था
उसके खालीपन में एक चूके हुए आदमी की पीड़ा का
मर्सिया था

bahut achchhi kavita hai sandhya ji.

सूर्य को अर्ध्य देती स्त्री की उपस्थिति से
गौरवान्वित होना था

ye laine kuchh khatkati hai.
lay me avarodh paida karti hai.
inhe kuchh dusari tarah se socha jaye .
vichar dhara ke leval par bhi kahin avarodh hai. kyonki ki yahan par yah aas hai.
usame is tarah ki ichchha ka hona
thik nahin ho sakta hai mere vichar se.
in panktiyon ka koi bhi durupayog karake striyon ke khilaf istemal kar sakta hai.
baki poori kavita bahut vajandaar hai.
badhai aapako.

admin ने कहा…

एक आम से विषय पर बेहद खास क‍तिवता।

ilesh ने कहा…

अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है ।

superb...

अभिषेक मिश्र ने कहा…

सही कहा आपने, अधूरे मकान में कई अधूरी ख्वाहिशें भी दबी होती हैं.

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) ने कहा…

और वह अधूरा मकान सिर्फ रास्ते में ही नही मिलता...मन के अन्दर भी पलता है और उम्र भर साथ चलता रहता है किसी न किसी रूप में.
बहुत सुंदर कविता है.

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति

बेनामी ने कहा…

वाकई लाजवाब. हम खंडहरों की बेबसी से उद्विग्न हुआ करते थे परंतु कभी अधूरे बने मकानों की पीड़ा को अनुभव नहीं किया.
बनना, बिगड़ना बनते बनते रह जाना. हम रोमांचित हो उठे. आभार.
"दो राहे पर लड़कियाँ" हमने पढ़ी थी. आप के ब्लॉग पर तो टिप्पणी के लिए लाइन लगानी पड़ती है. बधाइयाँ.

Akanksha Yadav ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!

बेनामी ने कहा…

Is kavita ko padhne ke baad ab jab bhi kisi adhure makan ke samne se gujarta hoon sihar jata hoon.

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना ने कहा…

संध्याजी
मेरे ब्लॉग पर आने और टिपण्णी कर हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
आपकी कविता " अधुरा मकान " मर्मस्पर्शी है.
नाजिम हिकमत की कविता " बेस्ट सोंग इस एट टू बी संग , बेस्ट स्टोरी एट टू बी रिटन,---------. की भी याद अधूरा मकान दिला देता है. और
अधूरा मकान सपनों और आदमी दोनों की औकात बता देता है. कासऐसी दुनिया होती जहाँ न सपने अधूरे होते और न कोई मकान
सादर

बेनामी ने कहा…

'अधूरा मकान सिर्फ़ अधूरा ही नहीं होता
अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है ।'

-अधूरे मकान के बहाने जीवन के दर्द को अभिव्यक्त करती रचना के लिए साधुवाद.

राजीव करूणानिधि ने कहा…

सही लिखा है आपने संध्या जी. एक अधूरे मकान के पीछे की हकीकत. लेकिन मै एक बात कहना चाहता हूँ कि अधूरेपन से डरने की जरूरत नही उसे समझने की जरूरत है. बढ़िया कविता के लिए शुक्रिया.

daanish ने कहा…

wo adhoora makaan...jaane kitne
toote-bikhre sapnoN ki kahaaniyoN
ko smete hue hai apne ateet meiN..
ehsaas aur jazbaat ki behadd umdaa
tarjumaani.....
mubarakbaad..........!!
---MUFLIS---

सुभाष नीरव ने कहा…

संध्या जी, आपके ब्लॉग पर पहली बार आया। वह भी तब जब आपने "सृजन यात्रा" में प्रकाशित मेरी कहानी "लुटे हुए लोग" पर टिप्पणी की। सचमुच, अफ़सोस हो रहा है कि आपके ब्लॉग पर बहुत देर से क्यों आया। आपकी "अधूरा मकान" कविता पर क्या कहूँ। बस, इतना कि ढ़ेरों कविताओं के बीच में जब कोई बहुत अच्छी कविता पढ़ने को मिल जाती है तो लगता है, कविता अभी जिन्दा है। यह भी विश्वास जागता है कि अच्छी कविताएं अभी भी लिखी जा रही हैं। मन को स्वत: स्पर्श करने वाली कविता है यह्। इस कविता पर आई टिप्पणियाँ भी गवाह हैं कि आपकी इस कविता ने पाठकों को भीतर तक छुआ है। बधाई !

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut ache lage is rachna ke bhav...

amitabhpriyadarshi ने कहा…

kafi hridayasparshi kavita hai .

अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है ।

kabhi kabhi aise adhure makaanon men apni kuch khohisen bhi bikhree dikhati hai .

shyam gupta ने कहा…

सन्ध्या जी,बहुत अच्छी रचना के लिये साधुवाद।
वस्तव में बहुत अच्छा लगता है, यथार्थ व भावुकता पूर्ण कविता पढना । सभी को अच्छी लगी। बधाई।
परन्तु यथार्थ के वर्णन के साथ यदि कारण व समाधान न हो ,जो कवि-साहित्य्कारव कविता का मूल उद्देश्य है तो वह अधूरा प्रयास ही माना जायगा ।
क्योन्कि जान्कर सभी खुश हो लेते हैं,क्योंकि वह दूसरे के साथ घतित हुआ है, क्यों हुआ व क्या होना चाहिये इस पर ध्यान नहीं जाता, इसीलिये साहित्य की रचना होती है।

shyam gupta ने कहा…

सन्ध्या जी,बहुत अच्छी रचना के लिये साधुवाद।
वस्तव में बहुत अच्छा लगता है, यथार्थ व भावुकता पूर्ण कविता पढना । सभी को अच्छी लगी। बधाई।
परन्तु यथार्थ के वर्णन के साथ यदि कारण व समाधान न हो ,जो कवि-साहित्य्कारव कविता का मूल उद्देश्य है तो वह अधूरा प्रयास ही माना जायगा ।
स्थितियांव यथार्थ जानकर सभी खुश हो लेते हैं,क्योंकि वह दूसरे के साथ घटित हुआ है, क्यों हुआ व क्या होना चाहिये इस पर ध्यान नहीं जाता, इसीलिये साहित्य की रचना होती है। अतः समाधान भी प्रस्तुत होना चाहिये ।