रविवार, 21 फ़रवरी 2010

प्रार्थना समय


अपार दुःख के साथ सूचित कर रही हूँ कि दि0 - 02 फरवरी 2010 को मेरी माँ (श्रीमती प्रेमा देवी ) का आकस्मिक निधन हो गया। वह सन् 1942 की क्रांति में गिरफ्तार होने वाली एवं स्वतंत्रता संग्राम की आंदोलनात्मक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी करने वाली संताल परगना की एक मात्र महिला स्वाधीनता सेनानी थीं। मेरे पिता श्रीकृष्ण प्रसाद जो स्वयं एक अग्रिम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानी थे के साथ मिल कर उन्होंने संघर्षपूर्ण जीवन जिया । जीवन पर्यंत सेवा, त्याग एवं समर्पण की भावना से लोक हित में जुड़ी रहीं। सादा जीवन उच्च विचार इनके जीवन की पूंजी थी। यों तो देश भर में अन्याय-अत्याचार-भ्रष्टाचार के विरूद्ध पति-पत्नी मिल कर लड़ते रहे किन्तु उनका प्रमुख कार्य क्षेत्र झारखण्ड -बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात रहा।

12 नवम्बर , 1993 को पिता के निधन के बाद वह अकेली हो गईं। जीवन के अंतिम पलों तक बातचीत के क्रम में वे कहती रहीं। “ जिन आदर्शों-उसूलों के लिये हम जीवन भर लड़ते रहे , आज लोगों ने उन्हें भुला दिया है। जब लोग व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठ कर समाज और राष्ट्र के हित की सोचेंगे, चुनौतियों का सामना करते हुए कठोर संघर्षपूर्ण जीवन जियेंगे तभी देश - समाज का सही विकास होगा । ”

आइये हम ईश्वर से इनकी आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना करें -







प्रार्थना समय

- यह एक शीर्ष बिन्दु
- यह एक चरम पल


- इसके आगे कोई रास्ता नहीं
- इसके बाद कोई रास्ता नहीं
- सारे रास्ते यहीं से खुलते हैं
- सारे रास्ते यहीं पर बन्द होते हैं

प्रार्थना और बस केवल प्रार्थना
भिन्न - भिन्न रंगों में
भिन्न - भिन्न अंदाज में
भिन्न - भिन्न स्थानों पर की गई प्रार्थना

जिनका स्वाद एक है
जो एक ही जगह से निकलती है
जो एक ही जगह को छूती है

यह एक समर्पण
यह एक विसर्जन
यह एक हासिल संकल्पों और विकल्पों की


अपने आप से लड़ी जाने वाली रोज़ की लड़ाई
देह की मन से
मन की आत्मा से
मैं की तुम से ... तुम की मैं से
और भर दिन से छनकर धिर आती सांझ
मन की घाट पर सीढ़ियां चढ़ती इच्छायें
युगों से जमी काई पर फिसलतीं
गिरतीं और बिखर जातीं...

वह एक पल मन के आकाश पर निकले पूरे चाँद का
पूरी ज़िन्दगी को घेरती
सुबह की प्रार्थनायें ... शाम की प्रार्थनायें
जगाती और सुलाती
केवल और केवल बस प्रार्थनायें ...