मेरे बारे में
शनिवार, 29 नवंबर 2008
गोश्त बस
वह काला चील्ह...!!
क्या तुमने देखा नहीं उसे...
जाना नहीं...??
है बस काला...
सर से पाँव तक...
फैलाये अपने बीभत्स पंख काले
शून्य में मंडराता रहता है
इधर-उधर
गोश्त की आस में
आँखों को मटमटाता
अवसर की ताक में....
चाहिये उसे गोश्त बस
....लबालब खून से भरा
नर हो या मादा
शिशु हो नन्हा-सा
या कोई पालतु पशु ही
काला हो या उजला
हो लाल या मटमैला
उसे चाहिये गोश्त बस!
...................................................................
शनिवार, 8 नवंबर 2008
कुछ भी नहीं बदला
सन्दूक से पुराने ख़त निकालती हूँ
कुछ भी नहीं बदला...
छुअन
एहसास
संवेदना!
पच्चीस वर्षों के पुराने अतीत में
सिर्फ़
उन उँगलियों का साथ
छूट गया है...
.................................................................................
कुछ भी नहीं बदला...
छुअन
एहसास
संवेदना!
पच्चीस वर्षों के पुराने अतीत में
सिर्फ़
उन उँगलियों का साथ
छूट गया है...
.................................................................................
सदस्यता लें
संदेश (Atom)