बुधवार, 11 नवंबर 2009

लैम्प पोस्ट




ये सुनसान फैली सड़क है
लैम्प पोस्ट की रौशनी में
चमचमाते भवन हैं
एक के बाद एक

सब में मरे पड़े हैं आदमी

ये पूरा इलाका एक मुर्दा-घर है
इस मुर्दा-घर में मैं अकेली खड़ी
सन्नाटे के बीच
तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!

हां , मुझे नींद में चलने की आदत है!

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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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53 टिप्‍पणियां:

पुरुषोत्तम कुमार ने कहा…

bahut behtar.

aarya ने कहा…

संध्या जी
सादर वन्दे!
अंतस कि अनुभूति यैसी ही होती है! सुन्दर .
रत्नेश त्रिपाठी

aarya ने कहा…

संध्या जी
सादर वन्दे!
अंतस कि अनुभूति यैसी ही होती है! सुन्दर .
रत्नेश त्रिपाठी

पारुल "पुखराज" ने कहा…

तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!

हां , मुझे नींद में चलने की आदत है!

behtareen ..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

ये पूरा इलाका एक मुर्दा-घर है
इस मुर्दा-घर में मैं अकेली खड़ी
सन्नाटे के बीच
तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!

हां , मुझे नींद में चलने की आदत है!

in panktiyon ne dil chhoo liya..

behtareen kavita.....

प्रकाश गोविंद ने कहा…

आपकी रचना को पढ़ते हुए बरबस विष्णु सक्सेना जी का गीत याद आ गया :

सोचता हूँ यहाँ मैंने क्या-क्या जिया
सौ ग़मों की जगह सिर्फ आंसू पिया
गाँव थे शहर थे और थी बस्तियां
मैं कहाँ ढूँढने आदमी चल दिया


बेहतरीन और अर्थमय कविता
बहुत सुन्दर
शुभ कामनाएं

आज की आवाज

Udan Tashtari ने कहा…

उफ्फ!! क्या कहें!!

Murari Pareek ने कहा…

sundar bhaawnaae ujagar ki !!! dhundhate rahiyee aadmi mil jaaye to hame bhi bataaiye!!!!

surinder ने कहा…

Sandhyaji, sunder bhav hain ....
Surinder

मीत ने कहा…

सच कहूँ तो आकी रचनाओ की अपने एक अलग श्रेणी है, अपना अलग स्थान है... वो स्थान जहाँ बहुत कम लिखने वाले ठहर पाते हैं...
और यह रचना तो बेजोड़ है....
मौन कर दिया है इस रचना ने मुझे...
सच में मेरे पास शब्द नहीं है इसकी तारीफ़ के लिए...
ऐसी रचनाएँ अक्सर ही हो जाया करती हैं...
मीत

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये पूरा इलाका एक मुर्दा-घर है
इस मुर्दा-घर में मैं अकेली खड़ी
सन्नाटे के बीच
तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी..

AAPKI RACHNAAYE BAHOOT BEJOD HAIN ... BAHOOT HI ALAG HAT KAR HAI AAPKA ANDAAZ ...

IS EK AADMI KI TALAASH MEIN POORA JEEVAN NIKAL JAATA HAI ... AUR KABHI KABHI TAB BHI TALAASH ADHOORI RAHTI HAI ...

Desk Of Kunwar Aayesnteen @ Spirtuality ने कहा…

आज खोजना पड़ गया एक आदमी को आदमी ...
कल एक अहम पे छोड़ आए थे उसी को ये आदमी ...
क्यूं मिले इस आदमी को वो आदमी...

जो बात मन में आयी बो लिख गया आपकी रचना कि अर्थ तो गहरे हैं.....

आभा ने कहा…

अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों बढिया..

प्रदीप कांत ने कहा…

तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!

हां , मुझे नींद में चलने की आदत है!

BADHIYA

Urmi ने कहा…

तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!
हां , मुझे नींद में चलने की आदत है!
वाह बहुत सुंदर पंक्तियाँ! बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! दिल को छू गई आपकी ये छोटी सी प्यारी सी रचना!

बेनामी ने कहा…

मुर्दा घर में अकेले खड़े होने का अहसास ,
जहाँ परिस्थितियों के बेजान होने का संकेत है ,
वहीं निपट अकेले होने का भी संकेत है !
संध्या जी !आप गरिमा मय हों !
और सुंदर टिप्पणी के लिए धन्यवाद !

Rajeysha ने कहा…

अजीब सा लगता है

मुर्दों के बीच रहना

चलना फि‍रना

उनसे बातें करना

उनकी निंदा उनकी प्रशंसा करना


और फि‍र कभी कभी शक होता है

कि‍ कहीं हम भी मुर्दे...


और नींद टूट जाती है।

BAL SAJAG ने कहा…

sahi kaha aapne in kankrito ke jangal men jayadatar murde hi rahte hai...
kabhi wkat mile to is bachchon ke blog par jarur aaiyega...

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

ये पूरा इलाका एक मुर्दा-घर है
इस मुर्दा-घर में मैं अकेली खड़ी
सन्नाटे के बीच
तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!

हां , मुझे नींद में चलने की आदत है!

एक बेहतरीन यथार्थवादी रचना।
पूनम

ज्योति सिंह ने कहा…

aapki rachnao me kafi gahrai hoti hai ,behtrin

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

उत्कृष्ट अभिव्यक्ति।
अच्छा लिखा है आपने। कथ्य और शिल्प दोनों स्तरों पर रचना प्रभावित करती है।

मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com

मेरी कविताओं पर भी आपकी राय अपेक्षित है। कविता का ब्लाग है-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

कडुवासच ने कहा…

... कमाल - धमाल !!!!!!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

छोटी मगर अपने आप में एक बड़ी त्रासदी की ओर इंगित करती कविता---
हेमन्त कुमार

Dr.Ajay Shukla ने कहा…

Sandhya ji har baar aapki kavita jhakjhor jati hai.sadhuvaad.

vishnu sah ने कहा…

Aapki kavitaon ki khas bat uski akhiri panktiyan hoti hain.Adbhut shilp.

Rajesh Srivastavaa ने कहा…

लाजबाब!

प्रकाश पाखी ने कहा…

कम शब्दों में जो कहा है वह हृदयस्पर्शी है...

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

उम्‍दा रचना है. बधाई.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Wah....
kya baat hai....

इशमेलावाला ने कहा…

क्या यह कविता है ? This level of negativity is not justified. आपकी कविताएँ तो बड़ी खूबसूरत होती हैं, फिर अचानक ये आप किधर चली गयीं !

Harshvardhan ने कहा…

lamp engine achcha laga.......

Ashok Kumar pandey ने कहा…

इस छोटी सी कविता में आपने बहुत कुछ कहा है… बधाई।

Indrani ने कहा…

Imaginations well penned.
:)

Sukhmandir Kaur ने कहा…

It's beautiful,!I love the wispy strokes. This makes me want to learn Hindi script. I don't think would be too difficult as I picked it right up when given a short lesson once. But never had the occassion to use it since. And i'dlove to beable to read the comments.

सुशीला पुरी ने कहा…

आपकी कविता इस बार हंस में पढ़ी ,बहुत बहुत बधाई .

बेनामी ने कहा…

samaj par tamache ki tarah hai yah kavita.apna vistrit parichay den.

Unknown ने कहा…

thanks for visit my blog and appreciation.

ज्योति सिंह ने कहा…

kuchh naya nahi daala bahut roj ho gaye intjaar hai

बेनामी ने कहा…

kya kahun...... adbudhh.....!!!

vishnu sah ने कहा…

Idhar Hns aur 'Jansatta vishes ank'me aapki kvitayen padhi.Khas taur par jansatta wali rachna to adbhut hai.mere vichar me hindi me aisa kuch pahle kabhi nahin likha gyaa. ho sake to ise blog par den.

padmja sharma ने कहा…

संध्या जी
एक खास मनः स्तिथि में लिखा है इसे .

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

आदरणीय संध्या जी, आशा है जीवन कुशल मंगल चल रहा होगा.

आपकी नयी रचनाओं की प्रतीक्षा है.

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

बना लिया मैंने भी घोंसला, उस कच्चे रास्ते पर और लैंप पोस्ट , तीनों कविताएं जेहन में उतर गयीं। कथ्य ने बहुत प्रभावित किया। आश्चर्य यह हुआ कि आपको अभी तक क्यों नहीं पढ़ पाया ! बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

BrijmohanShrivastava ने कहा…

"सब मरे पडे है आदमी"""तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी "[ एक अदद ज़िन्दा आदमी]

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

सन्ध्या जी,
अभी कुछ ही दिनों पहले आपकी कवितायें जनसत्ता के विशेषांक में पढ़ीं---बहुत अच्छी लगीं सभी कवितायें।
पूनम

Asha Joglekar ने कहा…

सन्न रह गई । धीरे धीरे उतरी जहन में आपकी ये रचना ।

Smart Indian ने कहा…

बहुत कठिन है.

रचना दीक्षित ने कहा…

हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

شہروز ने कहा…

पूरा इलाका एक मुर्दा-घर है!

kitna sach!


bahut khoob!!
saahas ki baat hai!!
saahas ko salaam!

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

bahoot khoob...
sundar rachna

अंजना ने कहा…

संध्या जी,नववर्ष की शुभकामनाएं

बेनामी ने कहा…

"तलाश रही हूं कब से एक अदद आदमी!" इससे अधिक और क्या कहेंगी - आभार.

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

madam.....man ko chhuti hui rachna hai ye....badhai