
कहा जाता है कि दिल्ली मे वह एक
बसाई हुई जगह थी
उस बसाई हुई जगह में कुछ बूढे बचे थे
जिनके पास विभाजन की स्मृतियाँ थीं
बहुत भाग - दौड़ कर जिन्दगी बसर कर लेने के लायक
सवा कट्ठे की ज़मीन हासिल करने की यादें थीं
वहाँ कुछ भयाक्रांत कर देने वाले विवरण थे
जीवन के लिये संघर्ष और आदमी के प्रति
आस्था - अनास्था के किस्से थे
उस सवा कटठे की जमीन पर बसाई गई जिन्दगी में आंगन नहीं थे
गलियाँ थीं...अंतहीन भागमभाग और काम में लगे स्त्री - पुरुष
321 नम्बर की बस पकड़ कर उस रूट के कामगारों को काम के अड्डे तक पहुँचना होता था
वहाँ सपने थे
थोडी धूप और हवा थी जो धुएँ और शोर में
लिपट गई थी
औरतों के लिये इतवार था...पर्व थे
वे उन्हीं दैत्य-सी दिखतीं रेड -ब्लू लाईन बसों में
रकाबगंज गुरुद्वारा चांदनी चौक के मंदिर या फिर लाल किले
जैसी ऐतिहासिक जगहों पर कभी - कभार जाती थीं
कहा जा सकता है कि वहाँ ईश्वर था!
जे अलसुबह उठ पाते थे-घंटिया बजाते थे
दो मकानों के बीच चौड़ी गलियाँ थीं
वहाँ गर्मी और उमस भरी रातों में औरतें और जवान लडकियाँ
बेतरतीबी से सो जाती थीं
गलियों में अलगनी थी जहाँ औरतों मर्दां बच्चों के कपडे
सूखते रहते थे
जिन्दगी की उमस के बीच देर रात तक
नई-पुरानी फिल्मों के गीत बजते थे
उन्हीं गीतों से जवान दिलों में
उस ठहरी हुई जगह में प्यार के जज़्बे उठते थे
कोई सिहरन वाला दृश्य आँखों के सामने फिरता था
उस बसाई हुई जगह पर बसे हुए लोगों ने
किरायेदार रख लिये थे -ये किरायेदार
दिल्ली की आधी आबादी थे
उन्हें महीने के आखि़री दिनों का इन्तज़ार रहता था
वह दिल्ली का बसाया हुआ इलाका था
दिल्ली पूरी तरह बाजार में बदल गई थी
ग़ौरतलब है कि फिर भी उस इलाके में
हाट लगती थी !
आस्था की बेलें मर रहीं थीं
लेकिन वहाँ हाट की संस्कृति बची थी
कुछ चीजें अनायास ओर खामोशी से
हमारे साथ चलती हैं ऐसे ही...जैसे...
दिल्ली में हाट
दिल्ली में चौंकना आपके भीतर की संवेदना के
बचे होने की गारंटी है!
उसमें पुराने लोग बचे थे
वहाँ पुरानी स्मृतियाँ थीं...
जहाँ विश्वासघात का अंधेरा था
उनके भीतर अपनी ही मिट्टी से उखड जाने
की आह थी
जो कभी -कभी उभरती थी
वे अक्सर गलियों में अकेले
हुक्का गुड़गुड़ाते कहीं भी आंखें स्थिर किये
बैठे पाये जा सकते थे
कुल मिला कर दिल्ली का वह इलाका था
अपनी बेलौस और रुटीनी दिनचर्या में व्यस्त
जिजीविषा के एक अनजाने स्वाद से भरा हुआ
जिजीविषा - जो उखड गई अपनी मिट्टी से
या जो पेशावर एक्सप्रेस से आकर
दिल्ली की आबोहवा में घुल गई
-लेकिन अब कहना चाहिये कि
इस महादेश के कई हिस्से
नेहरू विहार में तब्दील हो रहे हैं!
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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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