
बरसों बाद
वह भरी दोपहरी में एक दिन मेरे घर आया
इसे संभालो - ये कविताएँ हैं तुम्हारी
मैं हार गया ! !
उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े
ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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