
बरसों बाद
वह भरी दोपहरी में एक दिन मेरे घर आया
इसे संभालो - ये कविताएँ हैं तुम्हारी
मैं हार गया ! !
उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े
ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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51 टिप्पणियां:
"उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े
ये किताबें रख लो
यह पेन भी"
.....
उसका आना दिखता है
Just Beautiful !!
Mai to samajhti hun ki aadmee to smrutiyon ko bahut sahej ke rakhta hai..achhee buree sabhi...waise aapki rachana dilme ek kasak chhod gayi.
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
साक्षात लौटता है वो, रोज ही...
chand lines me hi bahut kuchh kah diya.
sashakt rachna.badhayi.
बहुत खूब............
बहुत अच्छी पंक्तियां...
ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
http://veenakesur.blogspot.com/
क्या कहूँ.... आपने तो निःशब्द कर दिया है.... अल्टीमेट क्रियेशन ...
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
मैं आपकी कई कविताएँ पढ़ चूका हूँ.आपकी कविताओं का अंत हमेशा ही अनोखा होता है.यह कविता भी अपवाद नहीं.साधुवाद
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
awesome !
.
बहुत गहरी छाप छोड़ी इस रचना ने.
संध्या जी.......
दिल को छूने वाली ...
उत्तम और सार्थक रचना हैं ......
इसके लिए आपको....
आभार .
स्मृतियां से सीख ले कर कई बार ज़िन्दगी खूबसूरत हो जाती है !
स्मृतियां से सीख ले कर कई बार ज़िन्दगी खूबसूरत हो जाती है !
यादें ... स्मृतियाँ कभी छूटती नही हैं ... वापस लौट कर ज़रूर आती हैं ... गहरी बात कहती हैं कुछ लाइने ..
"उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े
बढिया
अच्छी रचना है ........
(क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता ! !!
यानि और भी बहुत कुछ है ..जो संचित होती
रहती हैं ! स्मृतियाँ तो एक हिस्सा मात्र है !
बहुत गहरी और समवेदन शील रचना !!
ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
दुःख तो संभाल रखा है ...बहुत संवेदनशील रचना ..
बिलकुल सच कहा है .बेहतरीन रचना.
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
दिल को छू गयी आखिरी पँक्तियां। धन्यवाद।
bas yahi kahunga...
ORSAM...
bahut samvedana se bhari rachna hai badhai
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
बहुत खुब लेकिन कई स्मृतियां बहुत दुख भी पहुचाती है शायद इसी लिये, बहुत सुंदर ओर भाव से भरपुर रचना धन्यवाद
संध्या जी,
अच्छी रचना, बधाई
ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
bahut khoob ,ati sundar
अब अपने दुख की तरह ये सब सम्हाले नही सम्हलता । अदभुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति । बहुत सुंदर संध्या जी ।
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
बढिया
छू गयी स्मृतियाँ...ख़ूबसूरत गहरी कविता.
बड़ी ही रहस्यमय रचना है। शायद मेरी क्षमता से परे भी
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
अकस्मात निःशब्द कर दिया.........
सिर्फ वाह, वाह और वाह........ही..........
चन्द्र मोहन गुप्त
थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहती कविता -सुंदर ।
वाह, कित्ती छोटी पर सुन्दर सी कविता...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .
wahwa.....behtreen abhivyakti....sadhuwaad..
उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े
दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
बहुत अच्छा लिखा है संध्या जी।
काफी देर तक चुप सोचने के बाद ये पंक्तियां ही कह समता हूं...
उसने बड़े शौक से खरीदे थे कभी
वे जूते अब फट चुके हैं फैंके जा चुके हैं
फिर एक चाहत का कत्ल हुआ है
आदमी जिन्हे प्यार करता है
उन्हें जरूरत की झील में
विसर्जित भी करता है
फेंकी हुई चीजें
मनुहार से बदलकर
शिकवे
सवाल और मलाल हो जाती हैं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं कामनाएं ,
वास्तव में बेहतरीन रचना है !
wah. khoobsurat.
स्मृतियाँ संजोकर रखना ..
शायद दुखो का आधिक्य सम्भालने से ही न फुर्सत मिलती हो.
rachna bahut achhi lagi , aapko bhi sapreewar vijyadasmi ki hardik bdhaai ....
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अच्छा है
स्तब्ध हूँ - इतने कम शब्दों में कितना कुछ?
..जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
..मेरी समझ में नहीं आई कविता। स्मृतियों के अतिरिक्त तो सब कुछ लौटाता जा रहा है फिर यह कहना कि.. जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !..का क्या अर्थ है ?
मैं आपके द्वारा लिखी जारा ही कविताओं का प्रशंसक हूँ | प्रस्तुत कविता निश्चित रूप से अच्छी है, ऐसा आभास मुझे है | किन्तु मुझे स्वयं पर अफ़सोस हो रहा है कि इस कविता का मर्म नहीं समझ पा रहा हूँ |
कभी कभी लगता है चित्र पर ही कविता कही गई है। सुन्दर संयोजन।
'' उसका आना '' .........
यानि स्मृतियों का मेला !!!!!!!
Paristhtiyan Smrity ko Vismrity me badal deti hain.
अच्छी रचना वो है जिसे पढ़कर कुछ कहा ना जा सके, मै चुप हूँ
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