सोमवार, 20 सितंबर 2010

सिर्फ स्मृतियाँ नहीं




बरसों बाद
वह भरी दोपहरी में एक दिन मेरे घर आया

इसे संभालो - ये कविताएँ हैं तुम्हारी

मैं हार गया ! !
उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े

ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !


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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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51 टिप्‍पणियां:

पारुल "पुखराज" ने कहा…

"उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े

ये किताबें रख लो
यह पेन भी"
.....
उसका आना दिखता है

अमिताभ मीत ने कहा…

Just Beautiful !!

kshama ने कहा…

Mai to samajhti hun ki aadmee to smrutiyon ko bahut sahej ke rakhta hai..achhee buree sabhi...waise aapki rachana dilme ek kasak chhod gayi.

Avinash Chandra ने कहा…

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !


साक्षात लौटता है वो, रोज ही...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

chand lines me hi bahut kuchh kah diya.

sashakt rachna.badhayi.

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत खूब............

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत अच्छी पंक्तियां...

ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
http://veenakesur.blogspot.com/

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

क्या कहूँ.... आपने तो निःशब्द कर दिया है.... अल्टीमेट क्रियेशन ...

vishnu sah ने कहा…

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !

मैं आपकी कई कविताएँ पढ़ चूका हूँ.आपकी कविताओं का अंत हमेशा ही अनोखा होता है.यह कविता भी अपवाद नहीं.साधुवाद

ZEAL ने कहा…

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !

awesome !

.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहरी छाप छोड़ी इस रचना ने.

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

संध्या जी.......
दिल को छूने वाली ...
उत्तम और सार्थक रचना हैं ......
इसके लिए आपको....
आभार .

JAGDISH BALI ने कहा…

स्मृतियां से सीख ले कर कई बार ज़िन्दगी खूबसूरत हो जाती है !

JAGDISH BALI ने कहा…

स्मृतियां से सीख ले कर कई बार ज़िन्दगी खूबसूरत हो जाती है !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

यादें ... स्मृतियाँ कभी छूटती नही हैं ... वापस लौट कर ज़रूर आती हैं ... गहरी बात कहती हैं कुछ लाइने ..

प्रदीप कांत ने कहा…

"उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े

बढिया

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

अच्छी रचना है ........

(क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html

बेनामी ने कहा…

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता ! !!
यानि और भी बहुत कुछ है ..जो संचित होती
रहती हैं ! स्मृतियाँ तो एक हिस्सा मात्र है !
बहुत गहरी और समवेदन शील रचना !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब

दुःख तो संभाल रखा है ...बहुत संवेदनशील रचना ..

shikha varshney ने कहा…

बिलकुल सच कहा है .बेहतरीन रचना.

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

निर्मला कपिला ने कहा…

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
दिल को छू गयी आखिरी पँक्तियां। धन्यवाद।

मीत ने कहा…

bas yahi kahunga...
ORSAM...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut samvedana se bhari rachna hai badhai

राज भाटिय़ा ने कहा…

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
बहुत खुब लेकिन कई स्मृतियां बहुत दुख भी पहुचाती है शायद इसी लिये, बहुत सुंदर ओर भाव से भरपुर रचना धन्यवाद

पंकज मिश्रा ने कहा…

संध्या जी,
अच्छी रचना, बधाई

ज्योति सिंह ने कहा…

ये किताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
bahut khoob ,ati sundar

Asha Joglekar ने कहा…

अब अपने दुख की तरह ये सब सम्हाले नही सम्हलता । अदभुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति । बहुत सुंदर संध्या जी ।

Razi Shahab ने कहा…

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
बढिया

रमेश शर्मा ने कहा…

छू गयी स्मृतियाँ...ख़ूबसूरत गहरी कविता.

हिमांशु पाण्‍डेय ने कहा…

बड़ी ही रहस्यमय रचना है। शायद मेरी क्षमता से परे भी

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !

अकस्मात निःशब्द कर दिया.........
सिर्फ वाह, वाह और वाह........ही..........

चन्द्र मोहन गुप्त

Prem ने कहा…

थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहती कविता -सुंदर ।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

वाह, कित्ती छोटी पर सुन्दर सी कविता...बधाई.

________________

'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

wahwa.....behtreen abhivyakti....sadhuwaad..

kumar zahid ने कहा…

उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े


दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब

यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !

बहुत अच्छा लिखा है संध्या जी।
काफी देर तक चुप सोचने के बाद ये पंक्तियां ही कह समता हूं...


उसने बड़े शौक से खरीदे थे कभी
वे जूते अब फट चुके हैं फैंके जा चुके हैं
फिर एक चाहत का कत्ल हुआ है
आदमी जिन्हे प्यार करता है
उन्हें जरूरत की झील में
विसर्जित भी करता है

फेंकी हुई चीजें
मनुहार से बदलकर
शिकवे
सवाल और मलाल हो जाती हैं

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं कामनाएं ,

amar jeet ने कहा…

वास्तव में बेहतरीन रचना है !

mridula pradhan ने कहा…

wah. khoobsurat.

M VERMA ने कहा…

स्मृतियाँ संजोकर रखना ..
शायद दुखो का आधिक्य सम्भालने से ही न फुर्सत मिलती हो.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

rachna bahut achhi lagi , aapko bhi sapreewar vijyadasmi ki hardik bdhaai ....

बेनामी ने कहा…

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Betuke Khyal ने कहा…

अच्छा है

बेनामी ने कहा…

स्तब्ध हूँ - इतने कम शब्दों में कितना कुछ?

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

..जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !
..मेरी समझ में नहीं आई कविता। स्मृतियों के अतिरिक्त तो सब कुछ लौटाता जा रहा है फिर यह कहना कि.. जो संजोकर सिर्फ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !..का क्या अर्थ है ?

hempandey ने कहा…

मैं आपके द्वारा लिखी जारा ही कविताओं का प्रशंसक हूँ | प्रस्तुत कविता निश्चित रूप से अच्छी है, ऐसा आभास मुझे है | किन्तु मुझे स्वयं पर अफ़सोस हो रहा है कि इस कविता का मर्म नहीं समझ पा रहा हूँ |

Rajeysha ने कहा…

कभी कभी लगता है चि‍त्र पर ही कवि‍ता कही गई है। सुन्‍दर संयोजन।

सुशीला पुरी ने कहा…

'' उसका आना '' .........
यानि स्मृतियों का मेला !!!!!!!

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

Paristhtiyan Smrity ko Vismrity me badal deti hain.

PAWAN VIJAY ने कहा…

अच्छी रचना वो है जिसे पढ़कर कुछ कहा ना जा सके, मै चुप हूँ

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

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