
मैं उसके रक्त को छूना चाहती हूं
जिसने इतने सुन्दर चित्र बनाये
उस रंगरेज के रंगों में घुलना चाहती हूं
जो कहता है-
कपड़ा चला जायेगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा
उस कागज के इतिहास में लौटने की इच्छा से
भरी हूं
जिस पर
इतनी सुन्दर इबारत और कवितायें हैं
और जिस पर हत्यारों ने इकरारनामा लिखवाया
तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गये पीले खत
एक छोटी सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं
अभी स्वप्न से जाग कर उठी हूँ
अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है
यह शरीर !
.........................................................
चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
.............................................................................
85 टिप्पणियां:
.शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं
जैसे जैसे उम्र बीतती है हम पीछे लौटना चाहते हैं ..उन एहसासों को फिर जीना चाहते हैं ...खूबसूरत प्रस्तुति
सच, कितनी हकीकत है इन
बातों में................
तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गये पीले खत
एक छोटी सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं.
-विजय
http://hindisahityasangam.blogspot.com
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ...
आपको सपरिवार प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
उल्फ़त के दीप
कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन...
बहुत सुन्दर!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपको और आपके परिवार में सभी को दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ! !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
सँन्ध्याजी बहुत ही उच्चकोटि की कविता के लिए बधाई दीपावली की असीम शुभकामनाओँ के साथ।
बेहतरीन एवं अद्भुत अभिव्यक्ति!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
सच कहूँ तो बार-बार पढने के बावजूद भी मैं उपरोक्त कविता के पक्ष में या उसके बिरुद्ध कोई निर्णय नहीं ले पाया हूँ ,
बहरहाल आपको स: परिवार दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं और बधाई .
प्रारम्भ तो हमेशा साथ ही होता है। उसे लिए बिना आगे जाना मुश्किल लगता है।
कामना है यह इच्छा हमेशा यूं ही जीवित रहे।
यह कविता कई बातें एक साथ कह रही है.उम्दा.
बहुत सुन्दर... आप बहुत अच्छी कवितायेँ लिखती हैं... मैंने आपको पहले भी पढ़ा है... सधा हुस शिल्प, कहन और भाव सभी बड़े अच्छे हैं... सीखना चाहिए हमलोगों को ... शुक्रिया
...शुरू की गई गृहस्थी के पहले अहसास
को छूना चाहती हूं...
अंतर्मन से व्यक्त की गई गहन अर्थयुक्त कविता।
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं।
"रंग हमेशा आपके साथ रहेगा" बेहद सुन्दर रचना . दीपावली की शुभकामनाएं.
दीपावली कि शुभकामनाये
------------
मेरा पोर्ट्रेट ......My portrait
आख्यानों से भरी आपकी कविता सुखद क्षणों के पास ले गई ....... !!!
ज्योतिपर्व की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं !!!
"कपड़ा चला जायेगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा"
क्या बात है.अच्छी कविता की बधाई और बधाई दीपावली की भी.
यश, वैभव, सम्मान में,करे निरंतर वृद्धि.
दीवाली का पर्व ये , लाये सुख - समृद्धि.
कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com
बेहतर रचना वर्तमान से अतीत को लौटने की चाह आपकी रचना ने jagjit सिंह की गजल याद करा दी --वो कागच की कश्ती...... वो बारिश का पानी.....
दीपमाला पर्व की आपको बहुत बहुत बधाई हो
behad sundar likha hai ,padhkar man ko sukoon mila ,chalo phir se usi raah chale ,jeevan ki usi dhang se shuruaat kare jahan umang jawan aur josh se bhari rahi rahe .umda .shubh dipawali aapko
तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गये पीले खत
एक छोटी सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
आपको दीवाली की शुभकामनायें !
bahut accha laga padhkar,
aapko deepavali ki hardik subhkamnai.
kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaye.
आया तो था सिर्फ दीपावली की शुभकामना देने..एक अच्छी कविता की सैगात भी मिल गई।...वाह!
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं...
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ...
अति सुंदर रचना,धन्यवाद
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं
बहुत अच्छी कविता
दीपावली की शुभकामनाएं।
good one
Aap ko aur aap ke samast pariwar ko Deepawali ki Shubh Kamnayen.
Prstut kavita me aapne ateet ke ahsaason ka jo varnan kiya hai vah kafi prabhavotpadak aur sateek hai.
पुरानी यादें एक परछाई की तरह हमारा पीछा करती हैं. जितना हम इनको भुलाते हैं ये उतना ही याद आती हैं. कभी कभी तो ये इतनी शिद्दत अख्त्यार कर लेती हैं कि आपकी लेखनी उन सुनहरी यादों को एक बेहतरीन कविता का रूप दे देती है जो इस वक्त हमारे सामने है. इस सुन्दर कृति के लिए आपको बधाई. अश्विनी रॉय
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
बदलते परिवेश मैं,
निरंतर ख़त्म होते नैतिक मूल्यों के बीच,
कोई तो है जो हमें जीवित रखे है,
जूझने के लिए है,
उसी प्रकाश पुंज की जीवन ज्योति,
हमारे ह्रदय मे सदैव दैदीप्यमान होती रहे,
यही शुभकामनाये!!
दीप उत्सव की बधाई...................
wish u a happy diwali and happy new year
दीपावली की असीम-अनन्त शुभकामनायें.
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
उम्र के साथ साथ पुराने एहसास जागते रहते हैं .... बहुत गहरी रचना है .. आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना ...
sandhya ji,
waqai me bahut hi sundar rachna likhi hai aapne.purani saari baate yaad aati chali gai.bas vyakti un yaado me lout sakta hai uanhe mahsus kar sakta hai par unhe vapas nahi pa sakta.
उस कागज के इतिहास में लौटने की इच्छा से
भरी हूं
जिस पर
इतनी सुन्दर इबारत और कवितायें हैं
और जिस पर हत्यारों ने इकरारनामा लिखवाया
ek khoob surat prastuti---
poonam
Bahut hi achhe bhaon se piroya gaya hai.Prastuti achhi lagi. Dhanyavad
मैंने यह कविता ३ को ही पढ़ ली थी, आपकी कविताओं का लोभ संवरण होता नहीं मुझसे..
पर क्या लिखूँ, सिवाय इसके कि मंत्रमुग्ध हूँ.
ऐसा लिख सकने के लिए और पढ़वाने के लिए आभार व्यक्त करूँ बस इतना ही...
संध्या जी, बहुत सुंदर हैं आपके भाव। इस सदइच्छा को प्रणाम।
---------
इंटेलीजेन्ट ब्लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।
badhiyannnnn
संध्या जी,
आपकी कविता में मानवीय संवेदना की अकुलाहट पाठकों को उस गहराई तक ले जाती है जिसको आत्मसात करके आपने यह कविता लिखी है!
आपकी भाव प्रवण कविता मन को छू गई !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
अभी स्वप्न से जाग कर उठी हूँ
अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है
यह शरीर !
...जीवन की क्षणिकता का सुन्दर अहसास...
_________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
सन्ध्या जी, बहुत गहरी अनुभूति और सम्वेदनाओं की उपज है आपकी यह कविता-----आम आदमी के जीवन का यथार्थ उसके अन्तर्मन की भावनाओं को बखूबी चित्रित किया है आपने।
संध्या जी,
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.....बहुत सुन्दर ब्लॉग है आपका....इस रचना में आपने कमाल कर दिया है बड़ी खूबसूरती से आपने भावों को शब्दों में पिरोया है......पर ये एक सच है की जो आज वर्तमान है वही कभी अतीत बन जाएगा....फिर अतीत एक कसक के साथ उजागर होगा......मेरी शुभ्कम्नायेहैन आप ऐसे ही लिखती रहें.....इस उम्मीद में आपको फॉलो कर रहा हूँ...
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को को भी)
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
Wapas lautane kee chah kitane shiddat se ujagar hai is kawita men. Bahut sunder Sandhya ji.
तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गये पीले खत
एक छोटी सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं.
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ...
उस कागज के इतिहास में लौटने की इच्छा से
भरी हूं
जिस पर
इतनी सुन्दर इबारत और कवितायें हैं
और जिस पर हत्यारों ने इकरारनामा लिखवाया
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ह्त्यारों ने इकरार नामा लिखने के लिये भी सुन्दर इबारत और कविताएँ हैं....
पंक्तियाँ गहरे तक छूती हैं
बहुत अच्छी कविता....
"अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है
यह शरीर!"
जब कोई कहता है कि वह 25 वर्ष का हो गया तो इसका सही अर्थ होता है-उसने अपने जीवन को 25 वर्ष जी लिया है या वह 25 वर्ष मर चुका है।
क्योंकि जीवन के साथ ही साथ मृत्यु का भी प्रारम्भ है। मृत्यु से कम्पन या भय उसी दशा में है, जबकि हमने जो जीवन गुजार दिया या जिसे हम गुजार रहे हैं, उसमें कहीं कमी रह गयी है।
प्रकृति के नियम के अनुसार तो जीवन जी लेने के आनन्द के बाद तो सन्तोष होना चाहिये।
जीवन को जी लेने के बाद तो आनन्द की अनुभूति होनी चाहिये और शनै-शनै, जीवन का मृत्यु से साक्षात्कार होता जाता है। ऐसे में मृत्यु ये भय कैसा?
मृत्यु और जीवन का साथ तो दिन और रात्री की भांति है। सदैव दोनों का अस्तित्व है, लेकिन दोनों एक साथ दिखाई नहीं देते। इस कारण हमें केवल जीवन का ही अहसास रहता है और जीवित रहते हुए हम जिन स्वजनों को शरीर त्यागते हुए देखते हैं, उसे मृत्यु का अन्तिम सत्य मानकर, हम मृत्यु ये घबरा जाते हैं। जबकि सच तो यही है कि प्रत्येक क्षण हम जो जीवन जी रहे हैं, अगले ही क्षण, पिछले क्षण को सदा-सदा के लिये समाप्त कर (गंवा) चुके होते हैं।
समाप्त ही तो मृत्य का अन्तिम सत्य है। इसलिये प्रतिक्षण समाप्त और प्रारम्भ दोनों क्रियाएँ साथ-साथ चल रही हैं। हमें केवल जीवन दिखता है। मृत्यु को हम देखना नहीं चाहते। देख सकते हैं, बशर्ते कि प्रत्येक क्षण को सकारात्मक एवं संजीदगी से जी सकें।
जब सबकुछ सजगता से जी लिया जाये तो पछतावा किस बात का? सारी तकलीफ तो इच्छानुसा नहीं जी पाने की विवशता में ही छिपी है।
जिसके लिये समाज की सीमाएँ एवं कभी न समाप्त होने वाली भौतिक लालसा जिम्मेदार है और इन दोनों में हम ऐसे बंधे रहते हैं कि प्रतिपल जीने के बजाय केवल मरते ही रहते हैं और पूर्णता से नहीं जी पाने के कारण मृत्यु के आसन्न भय से भयभीत रहकर न तो वर्तमान को जी पाते हैं और न ही भविष्य को संवार पाते हैं।
ऐसे में जीवन और मृत्यु के बीच कम्पन या भयाक्रान्त होना स्वाभाविक है।
हमने अपने जीवन का सौन्दर्य समाप्त करके मृत्य का वरण कर लिया है। जिसके चलते हम जीवन से दूर और दूर चले जा रहे हैं और करीब आती मृत्य से बुरी तरह से भयभीत हैं!
wah kya baat hai....bhut khoob
एक बार फ़िर बढिया रचना ! कई दिनों से आभार मेरे हिंदी ब्लोग पर आपका आना नहीं हुआ ! मेरे ब्लोग पर भी दस्तक दें व फ़ोलो कर मार्ग प्रशस्त करें !
अतीत के आईने में वर्तमान को विश्लेषित करने की सार्थक कोशिश ...बहुत खूब ...शुभकामनायें
आपका लेखन बहुत ही विद्वत्तापूर्ण है। गाम्भीर्य के साथ-साथ ध्वन्यात्मकता से भी ओत-प्रोत है। यही ध्वन्यात्मकता उत्तम काव्य का लक्षण है, जो पढ़ते ही सहृदय को विभोर कर दे।
nice poem,
lovely blog.
रोचक लेखन।खूबसूरत प्रस्तुति.
भावना प्रधान सुन्दर कविता
आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।
navvarsh ki hardik shubhkamnayen
phir se utna hi aanand mila ,nutan barsh mangalmaya ho aapka .
Il semble que vous soyez un expert dans ce domaine, vos remarques sont tres interessantes, merci.
- Daniel
आपकी लेखनी को नमन तथा नव वर्ष की मंगल कामना.
मकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं........
खूबसूरत प्रस्तुति
nice poem nanijii
bahut sundar kavita!!!!
ati sundar....
मानस की अति गहन गुहा से निःसृत है प्रतिशब्द...
Great
भगत सिंह तुम फेल आदमी हो,तुम जिन आदर्शो और सिधान्तो की बात करते हो वो भी तुम्हारी तरह फेल है,क्योकि उनमे सिर्फ देशभक्ति है राजनीती नहीं,इसी कारण वो हर जगह फेल है!
तुम हालात को देख कर अपने सिधांत लिखते,क्या तुम्हे पता नहीं था की जो युवा तुम्हारे साथ तुम्हारे वक़्त में नहीं थे उनकी संताने तुम्हारे साथ भविष्य में कैसे होंगी!
तुम्हारे देशभक्ति भरे सिधान्तो की वजह से मै रोज बापू के बेटो के निशाने पर रहता हूँ,मुझे शिकायत है तुमने उसमे राजनीती क्यों नहीं जोड़ी!
और तो और तुम बेकार में फांसी चढ़ गए बिना लालच,तुम्हे राजनीती करनी थी ताकि हमे भी सत्ता का सुख मिलता,कही तुम भी चरखा ले कर बैठ जाते,क्यों जुल्म के खिलाफ पिस्तोल उठाई?
तुम्हारे सिधान्तो को कोई नहीं पढता क्योकि वो कीमत मांगते है,जज्बा मांगते है त्याग मांगते है,तुम्हे भी अपने समकालीन नेताओ की तरह सिधांत गढ़ने चाहिए थे,जिनमे सब कुछ मिलता हे मिलता है खोना कुछ नहीं पड़ता!
और तो और तुम्हे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दू की आंशिक रूप से आजाद इंडिया की सरकार की नज़र में तुम्हारी कीमत एक रुपये,दो रुपये से ज्यादा नहीं है और दूसरी तरफ तुम्हारे दौर के बकरी वाले बाबा हजारो पर छाए हुए है,अगर मेरा ख़त पढ़ रहे हो तो दोबारा जन्म मत लेना, नहीं तो सरकार तुम्हे आतंकवादी कह कर जेल में सडा देगी,फांसी भी नहीं देगी!
ये सब लिखते हुए मेरी आँखों में आंसू है तुम्हारे लिए,कलम भी डगमगा रही है,लेकिन भगते भाई मै मजबूर हूँ तुम्हारे सच्चे सिधान्तो की लाश अब और नहीं ढो सकता,मेरे लिए खुद की रोज़ रोज़ बेइजती करवाना मुश्किल है,भाई शेर को कुत्तो ने चारो तरफ से घेर रखा है,आखिर कब तक वो अकेला इनसे लडेगा
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह
तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गये पीले खत
एक छोटी सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं.
भावना प्रधान सुन्दर कविता
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं
bahut sunder kalpna......
ले दे कर कुछ निशानियाँ, खट्टी-मीठी यादें और गहरी टीस ही तो बच रहती है। मन भिगोने वाली रचना!
होली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
bahut din hue... koi nayi kavita post kijiye sandhya ji
already so many comments...no need for a new one...still...ur poem is very refreshing....
मैं उसके रक्त को छूना चाहती हूं
जिसने इतने सुन्दर चित्र बनाये
उस रंगरेज के रंगों में घुलना चाहती हूं
जो कहता है-
कपड़ा चला जायेगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा
sandhya ji laazwaab !!!
kya baat ...are waah ..bahut dino baad shudh kavyatmak anubhuti ..bahut hi badhiya ..badhai
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
sandhya ji
bahut suvar avam man ki anginat beete hue lamho ko sajati sanwarati aapki prastuti vastvikta liye hue hai .
umra aage ko bhagti hai par man kahta hai ki pichhe ki duniya me lout chal jahan se naye jivan ki shuruvat ki thi aapki post padh kar ham bhi purani yaadon me pahunch gaye hain .
bahut hi badhiya v yatharth purn prastuti
bahut bahut badhai
poonam
बहुत सुन्दर प्रयास...
सुन्दर अभिव्यक्ति.
बहुत समय से शांत हैं आप संध्या जी.
आप लेखन जारी रखियेगा.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गये पीले खत
एक छोटी सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं
बेहद सुंदर, आपकी कलम के पक्के रंग इसी तरह खिलते रहें ।
bahut khub........!!!
बहुत खुबसूरत रचना ,
पढकर आनंद आ गया !!!
मन की गिरह को खोलती सार्थक और भावपूर्ण रचना
सादर
इसमें सबने दीपावली की शुभकामनाएँ दी हैं और मैं इसे 2021 की होली पर पढ़ रही हूँ। क्या संयोग है ! जीवन की सार्थकता निरर्थकता दोनों का संतुलन साधती हृदय की सच्ची अभिव्यक्ति है यह रचना।
उस रंगरेज के रंगों में घुलना चाहती हूं
जो कहता है-
कपड़ा चला जायेगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा।
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