रविवार, 28 सितंबर 2008

प्रारम्भ में लौटने की इच्छा से भरी हूं!

मैं उसके रक्त को छूना चाहती हूं
जिसने इतने सुन्दर चित्र बनाये
उस रंगरेज के रंगों में धुलना चाहती हूं
जो कहता है-
कपड़ा चला जायेगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा

उस कागज के इतिहास में लौटने की इच्छा से
भरी हूं
जिस पर
इतनी सुन्दर इबारत और कवितायें हैं
और जिस पर हत्यारों ने इकरारनामा लिखवाया

तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गये पीले खत
एक छोटी सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए धड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूं....


"बना लिया मैंने भी घोंसला " से
(राधा कृष्ण प्रकाशन,नयी दिल्ली)


।.................................................

3 टिप्‍पणियां:

ravishndtv ने कहा…

संध्या जी
कविता पढ़ी। पसंद आ गई। लौटने का यही एक रास्ता है। शब्दों से कविता रच दें और लौट जाएं।

निर्झर'नीर ने कहा…

दुखद अतीत की यादें भी मधुर होती है .

Pratha Krishnan Swamy ने कहा…

Packers and Movers in Delhi Online for moving your house in Delhi.