गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

धुंध-सी जिन्दगी

सशंकित आकाश है
मद्धिम ...मद्धिम सांस
तीक्ष्ण तारों की टिम-टिम आंख

कंपकंपाते अंधेरों की थर्राहटों के बीच...
जीवन जमीं पर उतरता
आंखें शून्य में पुतरतीं
सांसें धुंएं में खो जातीं

कल/आज/कल
पल...पल...
जीने को विवश हम
अधकचरी
अनगढ़
एक धुंध-सी जिन्दगी!
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3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Sachmuch aaj ki jindagi bilkul anischit, angadh aur adkachri si hai.
Ati sundar.
Rahul Vatsa

निर्झर'नीर ने कहा…

कल/आज/कल
पल...पल...
जीने को विवश हम
अधकचरी
अनगढ़
एक धुंध-सी जिन्दगी!

exceelent creation

Pratha Krishnan Swamy ने कहा…

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