रविवार, 5 अक्तूबर 2008

छूट कर जाते हुए...

अंतहीन
समय की रेल पर सवार
धड़धड़ा कर गुजरते हुए
किसी मकाम पर उतर कर
देखना चाहती हूं
उसे
छूट कर जाते हुए .....

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3 टिप्‍पणियां:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

कहाँ तो सुना था .....
"उससे रुखसत तो हुआ था मुझे मालुम ना था..,
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला ....!!"
और क्या कहूँ इस बारे में !!

vandana gupta ने कहा…

bahut khoob kaha aapne..........ruk kar dekhne ki chahat ,peeche mudkar dekhna,yahi har koi chahta hai magar aisa ho nhi pata.........hai na

Pratha Krishnan Swamy ने कहा…

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