शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

दोराहे पर लड़कियाँ


दोराहे पर खड़ी लड़कियाँ
गिन -गिन कर कदम रखती हैं
कभी आगे-पीछे
कभी पीछे-आगे
कभी ये पुल से गुजरती हैं
कभी नदी में उतरने की हिमाकत करती हैं

ये अत्यन्त फुर्तीली और चौकन्नी होती हैं
किन्तु इन्हें दृष्टि-दोष रहता है
इन्हें अक्सर दूर और पास की चीजें नहीं दिखाई पड़तीं

ये विस्थापन के बीच
स्थापन से गुज़रती हैं
जीवन के स्वाद में कहीं ज्यादा नमक
कहीं ज्यादा मिर्च
... कहीं दोनो से खाली

दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!
.................................................
चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
......................................................................................................

51 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

"दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!"

कविता ने हतप्रभ कर दिया. एक विचित्र-सा चिन्तन-सम्मोहन हो गया. धन्यवाद.

ghughutibasuti ने कहा…

हिमांशु जी से सहमत हूँ ।
घुघूती बासूती

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत ही सुंदर और गंभीर अभिव्यक्ति। एक अच्छी और सुंदर कविता के लिए बधाई!

सुनील मंथन शर्मा ने कहा…

यह कविता मैं 'पुनर्नवा' में पढ़ चुका हूँ. बहुत अच्छी लगी.

विवेक सिंह ने कहा…

ये दोराहा तिराहे को ही बोलते हैं क्या :)

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

संध्या जी लडिकयों की िजंदगी की सच्चाई को आपने बडे मामिॆक तरीके से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

राज भाटिय़ा ने कहा…

"दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!"
??? लेकिन क्यो
धन्यवाद

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

ma"am bahut hi sarthak likha hai...........
sawal hal nahi kar pati hain unki majburi ko bahut hi acche tarike se prastut kiya hai.....

बेनामी ने कहा…

bahut khubsurat bhav man ki dasha likhi huyi rachana sundar

मीत ने कहा…

दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!
बहुत सुंदर और सच्चा...
---मीत

पुरुषोत्तम कुमार ने कहा…

गणितज्ञ होने के बावजूद सवाल न हल कर पाने की मजबूरी चाहे किसी की भी हो, बहुत कुछ सोचने पर बाध्य करती है। कविता बहुत अच्छी है।

सुशील छौक्कर ने कहा…

दोराहे पर खड़ी लड़कियाँ
गिन -गिन कर कदम रखती हैं
.............
कभी ये पुल से गुजरती हैं
कभी नदी में उतरने की हिमाकत करती हैं
............
दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!

बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।

BrijmohanShrivastava ने कहा…

थोड़ी सी लाइनों में बहुत गहराई छिपी है /सही में गणितग्य न होते तो बहुत हद तक समस्या सुलझ गई होती /इस गणित को और उलझन भरा बनने वाले भी आका है वो दूर बैठे बैठे गलतिया और गणित हल करने के सूत्र बतलाया करते हैं

सुजाता ने कहा…

अंतिम पंक्तियाँ बेहद गूढ और प्रभावी ।
एक उत्तम कविता के लिए बधाई!

बेनामी ने कहा…

दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!


Simple great and I am speechless!

Bahadur Patel ने कहा…

kuchh alag hatkar hoti hai
dorahe par khadi ladakiyan
nadi me utarane ki himakat karati ye ladakiyan
apane doobane ke sare sawalon ko
duba aati hai nadi me
achchhe se achchha gotakhor thah nahin le pata hai
inaka drusti dosh sirf itana hota hai ki
ye bich ki chijen nahin dekh pati

ye aar ya par ladai inhe khoob aati hai
ye ladakiyan vakai ganitagya hoti hai
par ye sawal hal karana nahi chahati hai
jis din ye ladakiyan sawal hal kar dengi
is duniya ke liye ek bhi rah nahi bachengi.
sandhya ji bahut khub kavita hai. badhai.

manu ने कहा…

bahut sateek kalam hai apki....
badhaai

Harshvardhan ने कहा…

bhav ghahre hai
kavita achchi lagi
aapko badhayi

संतोष कुमार सिंह ने कहा…

दो राहे पर खङी हैं जिदंगी, वक्त की नजाकत को समझों फैसला हम सबों को मिलकर लेनी हैं ।बहुत बहुत धन्यवाद आपकी रचना बेहद पसंद आयी (संतोष-ई0भी0पटना)

बेनामी ने कहा…

Bahut prabhavi.

Udan Tashtari ने कहा…

अद्भुत चिन्तन!!

गंभीर एवं गहन!!

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

आपने जो उपमायें दी हैं वो बहुत ही सुन्दर हैं बहुत-बहुत बधाई...

बेनामी ने कहा…

Gambheer,arth purna,aur sawal khde karti hui rachana,
"दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!"

ladkiyo ko har sawal ka hal khojna hi hoga.

--------------------"VISHAL"

ishq sultanpuri ने कहा…

ladkiyan dorahe par hi rahe kaheen chaurahe par na aa jayen....
.......achchhi rachana hai......

ishq sultanpuri ने कहा…

ladkiyan dorahe par hi rahe kaheen chaurahe par na aa jayen....
.......achchhi rachana hai......

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

धारदार अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें

Ashok Kumar pandey ने कहा…

"दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!"

अद्भुत पन्क्तिया…

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Sandhyaji,
Mere blog par ane aur meree hausala afjai karne ke liye bahut bahut dhanyavad.
Apke kavita Dorahe Par Khadee Ladkiyan....ladkiyon ke jeevan kee ekdam sahee tasveer hai. Hardik badhai.
Poonam

Manuj Mehta ने कहा…

बहुत खूब, बहुत ही सटीक दृष्टिकोण दर्शाती यह रचना बहुत ही प्रभावशाली है
आपकी कलम निरंतर चलती रहे यही प्रार्थना है.

बेनामी ने कहा…

Patna pustak mela me 'bihar hindi granth akadami' dwara aapki haaliya prakashit pustak dekhi.badhai.

akhilesh tripathi

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

बहुत लाज़बाब चित्रण किया है संध्या जी साधुवाद

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!
विलक्षण रचना...बधाई...
नीरज

vijay kumar sappatti ने कहा…

"दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!"

kya likha hai sandhya ji ..kavita bahut se impressions liye hue hai .. aur bahut gahri hai .. samjna honga sabhi ko...

aapko badhai

Pls visit my blog for new poems..

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

कविता में आपने हक़ीक़त का
बयां कुछ इस तरह किया है कि
विस्थापन का
बेचैन कर देने वाला स्थापन
बरबस, दिग्भ्रमित क़दमों की आहट
सुनने,समझने को विवश कर रहा है.
आप यकायक बहुत बड़ी बात कह जाती हैं.
=================================
शुभ कामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

P.N. Subramanian ने कहा…

जिन पंक्तियों को लेकर हम कुछ कहना चाहते थे वो तो सब ने ही कह दिया. बधाईयाँ.
http://mallar.wordpress.com

Meenakshi Kandwal ने कहा…

शायद इसी लिए कुर्तुलऐन हैदर "अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो" लिखने के लिए प्रेरित हुई होंगी।
ये भाव सिर्फ एक लड़की ही लिख सकती है।
यूं ही लिखती रहें... शुभकामनाएं

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

Sandhyaji,
Aj samaj men ladkiyon kee jo sthiti hai uska jeevant chitran kiya hai apne .Hardik badhai.
Hemant Kumar

बेनामी ने कहा…

साधुवाद इतनी सुंदर कविता के लिए . अन्तिम दो पंक्तियों में पूरी कविता का सार प्रस्तुत कर दिया है -

दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!

राजीव करूणानिधि ने कहा…

ये रवायत शायद शादियों पुरानी है, इसे बदलने की, इस पर विचार की ज़रुरत है.
आपकी कविता बहुत मार्मिक है. पढ़ कर सोच में पड़ गया. आखिर कैसे हल होगा ?

डॉ .अनुराग ने कहा…

देर से आने के लिए मुआफी ....कल छुट्टी मनाई थी इसलिए ....आज देर से सुबह की शुरुआत हुई वो भी आपकी कविता से .....सच में झिंझोड़ दे ऐसी कविता है.....जो सामायिक भी है ओर प्रसांगिक भी.....खास तौर से ये पंक्तिया
"दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!"

Amit Kumar Yadav ने कहा…

काफी संजीदगी से आप अपने ब्लॉग पर विचारों को रखते हैं.यहाँ पर आकर अच्छा लगा. कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें. ''युवा'' ब्लॉग युवाओं से जुड़े मुद्दों पर अभिव्यक्तियों को सार्थक रूप देने के लिए है. यह ब्लॉग सभी के लिए खुला है. यदि आप भी इस ब्लॉग पर अपनी युवा-अभिव्यक्तियों को प्रकाशित करना चाहते हैं, तो amitky86@rediffmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं. आपकी अभिव्यक्तियाँ कविता, कहानी, लेख, लघुकथा, वैचारिकी, चित्र इत्यादि किसी भी रूप में हो सकती हैं......नव-वर्ष-२००९ की शुभकामनाओं सहित !!!!

Vinay ने कहा…

नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!

ilesh ने कहा…

ये विस्थापन के बीच
स्थापन से गुज़रती हैं
जीवन के स्वाद में कहीं ज्यादा नमक
कहीं ज्यादा मिर्च
... कहीं दोनो से खाली

दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!

sahi kaha he aapne..apki likhai aur uskme buni hui haalaat ki sachai dil ko chhu gai...

Dev ने कहा…

First of all Wish u Very Happy New Year...

Ek sundar kavita ke liye badhai...

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

नव वर्ष में वंदन नया ,
उल्लास नव आशा नई |
हो भोर नव आभा नई,
रवि तेज नव ऊर्जा नई |
विश्वास नव उत्साह नव,
नव चेतना उमंग नई |
विस्मृत जो बीती बात है ,
संकल्प नव परनती नई |
है भावना परिद्रश्य बदले ,
अनुभूति नव हो सुखमई |

Dr. Nazar Mahmood ने कहा…

नववर्ष की हार्दिक ढेरो शुभकामना

बेनामी ने कहा…

DORAHE PAR.........GANI......HAI
LEKIN..............!"

bahudha unhe inhi bicharon par konch aati hai,
woh jina to chahti hai..
magar jee nahi pati hai!

Sushil Kumar ने कहा…

संध्या गुप्ता की कविता ‘दोराहे पर लड़कियाँ’ भी एक स्त्री के मन की उस तह को परत-दर-परत खोलती है जिसमें उसके युगीन दासत्व की पीड़ा का भोगा हुआ वह सत्य गोचर होता है जहाँ नारी की दुनिया अभी भी एक ऐसी असमंजस और दुविधा की दुनिया बनी हुयी है जिसमें अपने अंतहीन संघर्ष और यातना की राह से गुज़रती हुयी वह अभी तक अपनी मंजिल तय नहीं कर पायी है। काफी सफल कविता ।- सुशील कुमार।

shelley ने कहा…

ये विस्थापन के बीच
स्थापन से गुज़रती हैं
जीवन के स्वाद में कहीं ज्यादा नमक
कहीं ज्यादा मिर्च
... कहीं दोनो से खाली
आपकी कविता ने एक नए विचारो को जन्म दिया. चित्र भी अच्छे हैं

रवीन्द्र दास ने कहा…

aisa nahin hai. meri kavita ko isase asahmati hai. kripaya dhekhe,'ek ladki gujrati ja rahi', mere blog ko post.
nirash kiya hai is kavita ne, ek yathasthitivadi bayan ki tarah.

Pratha Krishnan Swamy ने कहा…

Send Birthday Cakes to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !