मेरे बारे में
सोमवार, 9 मार्च 2009
इस सभ्यता के पास अनुकूल तर्क है!
यह बहुत चालाक सभ्यता है
यहाँ चिड़ियों को दाने डाले जाते हैं
और चिड़ियों को मारने के लिये बंदूकें भी बनती हैं
यहाँ बलत्कृत स्त्री
अदालत में पुनः एक बार कपड़े उतारती है
इस सभ्यता के पास
स्त्री को कोख में ही मार देने की पूरी गारंटी है
यहाँ पहली बरसात में
वर्षों की प्रतीक्षा से बनी गाँव की ओर
जाने वाली सड़क बह जाती है
सबसे बड़ी बात है...
इस सभ्यता के पास अनुकूल तर्क है!
................................................
चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
....................................................................
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
56 टिप्पणियां:
kunsi sabhyata he..????
ye to bataieye.......
सबसे बड़ी बात है...
इस सभ्यता के पास अनुकूल तर्क है!
Sach kaha !
holi ki aur jhankrat kar dene wali nayee kavita ki aapko dil se shubhkamana.
Sandhya ji
शशक्त रचना........सच में पिरोया हुवे शब्द,
गहरी सोच, समाज का सही चित्रं खींचा है आपने.
आपको और आपके परिवार को होली मुबारक
विसंगतियो का सटीक चित्रण
'सबसे बड़ी बात है...
इस सभ्यता के पास अनुकूल तर्क है!'
-हमेशा की तरह एक बढ़िया रचना के लिए साधुवाद.
Hamare samaj ki visangatiyon ko bahut dhardar tarike se ujagar kiya hai aapne is kavita ke dwara.
Sadhuwad.
यहाँ पहली बरसात में
वर्षों की प्रतीक्षा से बनी गाँव की ओर
जाने वाली सड़क बह जाती है
सबसे बड़ी बात है...
इस सभ्यता के पास अनुकूल तर्क है!
bahut badhiya kavita hai.
apako holi ki shubh kamanayen.
संध्या जी ,
आपकी हर कविता अपने आप में एक सम्पूर्ण कहानी होती है कम शब्दों में लिखी हुई .
होली की मंगल कामनाएं
हेमंत कुमार
रंग-पर्व की शुभकामनायें।
होली मंगलमय हो, बेहतरीन कविता - पुनर्नवा में भी पढा था, बधई!
आपको भी होली मुबारिक हो.
बहुत सफल कविता के लिए बधाई.
इस तथाकथित सभ्यता को आदिम सभ्यता भी नहीं कह सकते.
हाँ, शायद फर्ज़ी बाड़ा
सही शब्द है.
सबसे बड़ी बात है...
इस (कु)सभ्यता के पास अनुकूल (कु)तर्क है!
जो विवेक की आँखों पर पट्टी बँधवा देते हैं
.
आप को भी रंगो भरी होली मुबारक। साथ ही रचना बेहतरीन है। अच्छा लगा यहाँ आकर।
aap sb ko HOLI ki shubhkaamnaaeiN
aaj ke halaat ki dur-dashaa ka
steek chitran karti hui ek kaamyaab
kavita......
abhinandan . . . .
---MUFLIS---
रंगों उमंगों और तरंगों के त्योहार होळी की आपको सपरिवार मंगलकामनाएं
सही खाका खीँचा है .
सब गलत हो तो भी तर्क के बल पर सही कहलायेगा
bahut jabardast baat likhi hai dhanywaad
होली की आपको और आपके परिवार में समस्त स्वजनों को हार्दिक शुभकामनाएँ
Aapko bhi holi mnubarak ho!
संध्या जी,...ख़ुशी ख़ुशी होली मुबारक कहने आया था,पर जो कविता आपने पढ़वाई है,,,,तो काफी सोचने को विवश हो गया,,,,,
द्विज जी ने सही कहा ,,,
इस कुसभ्य्ता के पास कुतर्क भी हैं,,,,
होली की ढेरो शुभकामनाएं। होली के इस रंग-बिरंगे पर्व पर आपको व् आपके परिवार के समस्त सदस्यों को हार्दिक बधाई ........
संध्या जी
एकदम सही प्रस्तुति.
फिर भी प्रजातान्त्रिक तरीके से चुनी सरकार भी पीछ्ली
सरकार का ही अनुशरण करती. अर्थात इधर कुआ उधर खाई
अब चिंतन करो, क्या करें भाई......
"इस सभ्यता के पास
स्त्री को कोख में ही मार देने की पूरी गारंटी है"
-विजय
बेहद सशक्त व प्रभावशाली रचना है, प्रसंशनीय।
सबसे बड़ी बात है...
इस (कु)सभ्यता के पास अनुकूल (कु)तर्क है!
जो विवेक की आँखों पर पट्टी बँधवा देते हैं
हर पैसे का लोभी इसमें सशर्त समर्थन भी देता है.
कम शब्दों में सही तस्वीर पेश करने का धन्यवाद.
होली पर आपको ढेरों बधाइयाँ, मुबारकवाद एवं हार्दिक शुभकामनाय.
Is rachna ke liye badhai swikaren.
सच में...
इस सभ्यता के पास अनुकूल तर्क है!
सुंदर अभिव्यक्ति...
मीत
अच्छी कविता है भई इसके लिये बधाई और होली मुबारक....
यह तो आजकी सामाजिक विकृतियों का प्रतिबिम्ब लगा. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार,. नेट के काम न करने से हम वंचित हो गए थे.
देर से ही सही होली की ढेर सारी शुभकामनाये जल्द ही ब्लांग के दुनिया में लौट रहा हँ,
मैं भी आज की सभ्यता के झंझावत में कही खो गया था उम्मीद हैं नये उत्साह के साथ वापस लौटुगा।
Sandya ji, sayad aapke blog pe pehli bar aayi pr aapki ye paktiyan dil chu gayin ...sayad inme wahi vyatha hai jo ek aurat ke andar kahin ghutti rahti hai....Bhot bhot ...BDHAI...!!
webduniya मुख पृष्ठ>>फोटो गैलरी>>धर्म संसार>>त्योहार>> होली के रंग भगोरिया के संग ! (Holi - Bhagoriya Festival Photogallery)
log on kare aur
bhagoriyaa ke drushyo se avgat ho le
अत्यधिक गंभीर
Sandhya ji,
yatharth ko darshane valee sashakt kavita.....
Poonam
kya baat hai! bahut khoob
तर्क गलत को भी सच साबित कर देता है ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने !!!!!!!!
ek shsakt rachanaa.
gambhir soch.
संध्या जी आपने हमार सभ्यता के ऊपर जो लिखी है वही हकीकत है हमारे समाज की हमारे सभ्यता की । इस सभ्यता में नारी के साथ क्या हो रहा है वह भी आपने सच ही लिखा है । हकीकत की मिशाल आपने पेश की है शुक्रिया
Vastav me yah sabhyata nahin kuch aur hai.
संध्या गुप्ता का कवि सरल शब्दों के पतवार से जीवन - सागर की अतल गहराईयों की थाह लेता है। जीवन की विसंगतियाँ,सभ्यता की विडंबनायें और जन - बातों की प्रस्तुति में जनता का दु:ख शामिल होकर कवयित्री के शब्द-कर्म को साहित्य का वह आईना बनाती है जिसमें समकालीन कविता अपना चेहरा देख सकती है और गर्व भी कर सकती है। इस कविता में आधुनिक सभ्यता की विद्रुपताओं को जितना सरल-सहज और बोधगम्य करके प्रस्तुत किया गया है,वह इसका विशेष गुण माना जाना चाहिये। कविता जितनी सरल है , भाव उतना ही संश्लिष्ट है। नि;संदेह यह कविता काव्य के उच्च प्रतिमानों को पाठक के सामने रखती है।
यहाँ बलत्कृत स्त्री अदालत में पुनः एक बार कपड़े उतारती है
मुझे भरोसा है जंगल के न्याय पर पूरा का पूरा
कोई घर यूँ ही नहीं छूट जाता अधूराकोई ज़मीन यूँ ही नहीं रह जाती बाँझ
दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैंलेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!
गोश्त की आस में आँखों को मटमटाता अवसर की ताक में....
कुम्हार नहीं बनाता रेत से बर्तनरेत के कण आपस में कभी पैवस्त नहीं हो सकते !
लौट कर आओगेऔर अपनों के बीच अपने कपड़ो और जूतो से पहचाने जाओगे...!वहां वह संसार नहीं मिलेगा !!
उस रंगरेज के रंगों में धुलना चाहती हूं जो कहता है- कपड़ा चला जायेगा बाबूजी! पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा
कोई नहीं था कभी यहां इस सृष्टि मेंसिर्फ मैं... तुम....और कविता थी!
संध्या ,
तुम सुबह हो
सम्वेदनाओं से भरी
और तुम्हारी कवितायें
नदी हैं
प्रतिको और बिम्बों की
उत्ताल लहरों से भरी
जिसमे उछाह है
मानवता के उत्कर्स
और उठान के लिए
जो साथ लिए चलती है
पथ्थरों को
धीरे धीरे रेत में बदलती
संध्या
तुम संध्या हो
जहाँ विश्राम पाता है
पीड़ा और थकन का स्वर
तुम हो बहता
शीतल झरना झर झर
यह बहुत चालाक सभ्यता है
यहाँ चिड़ियों को दाने डाले जाते हैं
और चिड़ियों को मारने के लिये बंदूकें भी बनती हैं ...अच्छा लगा यहाँ आकर.....
i found something different here...also thanks for comming on my blog.
सत्य वचन एक कडवा सच फिर भी नारी महान है इसीलिए वह दुनिया का बॊझ ऒर अत्याचार अपने उपर ढॊ रही है यह उसका बडप्पन ही है
चिडियां विषयक एक कविता अभी-अभी मेरे ब्लाग पर आयी है…। मेरा बचपन दुमका में बीता इसलिए भी यह ब्लाग मेरा प्रिय है……।
सबसे बड़ी बात है...
इस सभ्यता के पास अनुकूल तर्क है!
सही खाका.......
ब्लॉग जगत पर अब रचनाओ ने अब बेहद ऊँचे प्रतिमान हासिल कर लिए है ,आपकी रचना इसका प्रमाण है .बधाई !
doaaba.blogspot.com आपकी साहित्यिक अभिरूचि के अनुरुप हो सकती है……
बहुत ही सुन्दर रचना....
हिली की आपको भी शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयाँ..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्तियाँ...बधाई !!
______________________________
गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!
Nice to see yr blog.. and yr words..
आपके शब्दों की तारीफ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। बस! मैं आपको प्रणाम करता हूं।
kavita sirf sundar nahi,marmantak bhi hoti hai, jo hai. hilakar rakh diya!
यह जो बात आपने कही.....दिलो-दिमाग को हिला कर रख गयी.....और गज़ब यह कि इस सभ्यता को ढोने को हम अभिशप्त भी हैं....!!
itne tippanikaro me sabse pichhe aour baad me padhne ka karan yah tha ki me pichhle 20 dino se baahar tha..
kher..
सबसे बड़ी बात है...
इस सभ्यता के पास अनुकूल तर्क है!
sachchai he, tarko ne sachchai ko bhi giraft me le rakha he.,ese me sirf shabd he jo vyakt hote he...
bahut sundar likha he aapne..
Kam aur saral sabdo me ati sundar rachna.
आपकी कविताएँ ताज़ा हवा के झोंके सी लगीं. प्रस्तुति और भी शानदार. कविता पुरस्कार के लिए बधाई...
www.rajeshwarvashistha.blogspot.com
एक टिप्पणी भेजें