वे नहीं रहे
तब हमने उनके बारे में जाना
वे सूर्य को दिये जाने वाले अर्ध्य का
पवित्र जल थे
बरगद की छाँह थे
मंदिर की सीढ़ियाँ थे
खेत में लगातार जुते हुए बैल थे
संघर्ष के बीच
जिजीविषा को बचाने की इच्छाओं की
प्रतिमूर्ति थे
वे राष्ट्र के निर्माण की कथा थे
वे जनपद में पहली लालटेन लेकर आये थे
यह सिर्फ किवदंती ही नहीं है
जब कई स्त्रियों को रखने की प्रवृति
आदमी की दबंगता में शुमार की जाती थी
उन्होंने बच्चों के लिये स्कूल
गांव के लिये अस्पताल
भूमिहीनों के लिये ज़मीन
बेरोजगारों के लिये चरखे करघे की पहल की
उनके पास पराघीन देश की कई कटु
और मधुर स्मृतियाँ थीं
होश सम्भालने से लेकर
अपने जीवन का एक तिहाई
देश को स्वाधीन करने में होम कर दिया
यह आजीवन संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पहलू था
जिसे उन्होंने कभी बातचीत में
तकिया कलाम नहीं बनाया
अलबत्ता अंतिम दौर की लड़ाई में
जर्जर - रूग्णकाय
शून्य में कुछ इस तरह देखा करते
जैसे कोई अपने बनाये हुए घरोंदे को
टूटते हुए देख रहा हो
यह सच है
कि पेंशन के लिये वे कभी परेशान नहीं दिखे
पर आजादी के बाद की पीढ़ी ने उनके लिये
चिन्ता प्रकट की
उन्हें उनकी भौतिक समृद्वि पर
असंतोष था
उनकी नज़र में वे अव्यावहारिक थे
उनके पास जीवन के अंतिम क्षणों में
कोई सुन्दर मकान नहीं था
आखि़री सांस तक की लड़ाई के बाद भी
कोई बैंक बैलेंस नहीं था
जो उनके लिये चिन्तित दिखे
वे वक्त का मिज़ाज समझने वाले
सफल नज़रिया रखने वाले
दुनियादार लोग थे
उनके सधे अनुभव में उन्हें
समय के साथ चलना था
वे फक्कड़ थे ! कबीर थे !
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे.
.............
पूज्य पिता श्री श्रीकृष्ण प्रसाद की स्मृति में
...................................................................
झारखण्ड राज्य, संथाल परगना के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी . कार्य-क्षेत्र - मुख्यतः झारखण्ड-बिहार, उत्तर प्रदेश .
महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं - प्रताप, वीरभारत, आज, अमृत प्रभात, गाधी संदेश, गाधी मार्ग, अम्बर इत्यादि से सम्बद्ध , सम्पादक -लेखक जिनका सम्पूर्ण जीवन निःस्वार्थ सेवा और त्याग में व्यतीत हुआ जिन्हें अपने विज्ञापन में कोई रुचि नहीं थी .
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शनिवार, 30 मई 2009
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58 टिप्पणियां:
जो उनके लिये चिन्तित दिखे
वे वक्त का मिज़ाज समझने वाले
सफल नज़रिया रखने वाले
दुनियादार लोग थे
उनके सधे अनुभव में उन्हें
समय के साथ चलना था
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना बधाई
भावपूर्ण रचना
बधाई
बहुत -बहुत बधाई एक भाव पूर्ण रचना के लिए .
बेहद सुन्दर रचना.... आज के दौर में ऐसे फक्कड़ इंसान मिलना मुश्किल है..
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत सुंदर लगी आपकी यह रचना... आजकल कोण फक्कडों को याद करता है...
मीत
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे.
--
बहुत ही अच्छी दिल को छू लेने वाली रचना लिखी है संध्या जी आप ने.
वह लोग ही कुछ और थे जो औरों के लिए जिए!
आप के पूज्य पिताजी को मेरी भी विनम्र श्रृद्धांजलि
उन्हें सादर नमन। और उन्हें इतने भाव-भीने शब्दों में याद करने के लिये आपको साधुवाद।
उनके पास जीवन के अंतिम क्षणों में
कोई सुन्दर मकान नहीं था
आखि़री सांस तक की लड़ाई के बाद भी
कोई बैंक बैलेंस नहीं था
भावोक रचना है..........स्वतंत्रता के बहुत से सेनानी ऐसे ही रह गए है बेचारे ............
bahut achhi rachna.....mujhe aapke shabdo ka chunaav bahut achha laga.
आपके पिताजी की स्मृति को सुँदर शब्दोँ से श्रध्धँजलि दी है आपने -
उन्हेँ मेरा भी सादर नमन !
स स्नेह,
- लावण्या
वे फक्कड़ थे ! कबीर थे !
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे.
भावपूर्ण
ऐसी महान हस्ती को मेरा प्रणाम ..अब वैसे जीवट .वैसे इंसान ढूँढने से नहीं मिलते .
संध्या जी !
प्रणाम नमन ऐसे स्वतंत्रता के यज्ञ में खुद को भूल जाने वाले , नींव के पत्थरों को .
हमारी पीढी सिर्फ उन्हें याद कर सिर्फ खुद पे शर्मिंदा हो ले तो यही बहुत होगा .
ऐसे ही 'कबीरों ' के चलते हम अपने को आजाद कह रहे हैं .
नमन !
ashrupoorit aankho se naman/
smartiyo ko charitra ki saadgi se baandh kar kavita roopi shabdo me jis tarah se prastut kiya he, sach maaniye unke jivan ke poore poore "kabeer" ko jaan liya/
mahanta vigyaapano se jaaheer nahi hoti, aap jesi suputri ke jariye hamne jaanaa, unke liye kisi mahanta ke thappe ki jaroorat nahi he, esi putri ko janm dena hi unke ishvar ki un par kraupa rahi//
mera shat shat naman///////
bahut hi bhaav-poorn rachnaa
meri taraf se vinamr shraddhaanjlee
aapka abhivaadan...aur dhanyavaad.
---MUFLIS---
संध्या जी ,
आप का लेख सच मच मन को छुआ.
बेहद सराहनीय.
स्मृतिशेष को सादर प्रणाम.... आप कितनी सौभाग्यशालिनी हैं कि आपको ऐसे पिता मिले..!!!
प्रखर अभिव्यक्ति से सम्पन्न इस कविता की एक एक पँक्ति सीधे रूह तक उतर जाती है.
आपकी लेखनी को नमन
Dwij ji told me about your poem it is too good and it comes from true self...
Ye aakrosh har kisi ke dil me bhara hai lekin aapne use sachaee aur imandaree se ubhara hai.
Thanks
वे फक्कड़ थे ! कबीर थे !
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे.
आपने तो इस रचना के माध्यम से अपने पूज्य पिता जी के समस्त जीवन का चित्रण कर डाला....हमारी ओर से उन्हे विनम्र श्रद्धाजली ।
बहुत ही अच्छी और भावपूर्ण रचना है आपकी......
काश आज हमें भी इन फक्कडो का आदरणीय साथ मिल सकता.......
Bahu dino ke baad aapki koi rachna padhne ko mili.Aapke pitaji ko hamara naman.
I read ur story in Dainik Jagran...Congts.
_____________________________
विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!
Kitni saadgi bhare shabad.....maeri aur se bhi naman.kabhi hamare blog par bhi dastak de.
श्रद्धांजलि
ऐसे नीव के पत्थरों ने ही इस देश को बनाया है।
aisi mahan hasti ko mera naman aur pranaam ,, is desh me ab aise insaan nahi milte ... kitna accha likha hai aapne.. 15 august ko wo 10 ghante soye.... ye aazaadi ..
aha ...
mera naman aapko bhi..
badhai
"आखि़री सांस तक की लड़ाई के बाद भी
कोई बैंक बैलेंस नहीं था"
दिल को व्यथित करती कविता !
"जो उनके लिये चिन्तित दिखे
वे वक्त का मिज़ाज समझने वाले
सफल नज़रिया रखने वाले
दुनियादार लोग थे
उनके सधे अनुभव में उन्हें
समय के साथ चलना था"
आत्म-चिंतन को मजबूर करती पंक्तियाँ !
वे फक्कड़ थे ! कबीर थे !
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे.
ऐसी दिव्या आत्मा को कोटि-कोटि नमन !
आपके लेखन की सराहना करते हुए
बाबू जी विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूँ!
आज की आवाज
समाज में जब ऐसे लोगों की संख्या बढ़ जाती है तभी परिवर्तन संभव हो पाता है.
"वे फक्कड़ थे! कबीर थे!
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे."
बहुत सुन्दर! नमन!
"Hans" aur "Aajkal" me chapi aapki kavitayen aur Dainik Jagran me chapi kahani padhi.Yah jankar achcha laga ki aap kahaniyan bhi likhti hain.abhar.
बहुत -बहुत बधाई एक भाव पूर्ण रचना के लिए...
सफल नज़रिया रखने वाले
दुनियादार लोग थे
उनके सधे अनुभव में उन्हें
समय के साथ चलना था .....
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे.
very nice....wo jamaana aur log ab nahi rahe....
ईमानदारी के साथ, बिना किसी मोह और लोभ के, आजादी की जंग और देश के उत्थान की कोशिशों में अपना पूरा जीवन लगा देने वाली विभूति को सादर नमन्। ....जब भी हमें गुलामी और आजादी का फकॆ महसूस होता है, हम ऐसी महान विभूतियों को याद करते हैं।
संध्या जी
भाव भारी अभिव्यक्ति है.
पूज्य पिता श्री श्रीकृष्ण प्रसाद को हमारी भी विनम्र श्रद्धांजलि
- विजय
ह्र्दयस्पर्शी… बधाई स्वीकारें। मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है.
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे दूसरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही सुंदर रचना लिखा है! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती जाती रहूंगी!
वो पीढी ऐसी थी तभी हमारा देश आज़ाद हो पाया.........
न तो भगवान् ही मालिक था.........
आपके पिता जी और सभी ऐसे देश वासियों को मेरा शत-शत नमन..........वे अमर हैं आपके दिल में हमारे दिल में.....
अक्षय-मन
संध्या गुप्ता की यह रचना मैं व्यस्तता के कारण देर से पढ़ पाया। इस कविता में उन्होंने अपने पिता की जीवन- शैली का उद्धरण देकर स्वतंत्र्योत्तर भारत की उन विडम्वनाओम की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है जो हमें हमारे किये कर्म पर पु:न:सोचने को मजबूर करता है। यह कितनी त्रासद स्थिति है कि आज भी हम अपनी उस चुभने वाली लील को अपने जीवन की ड्योढी से बाहर नहीं कर पाये हैं जो हमेम गुलाम भारत की ही याद दिलाता है जहां हम दु:खी और अभावग्रस्त ही थे।
बरगद की छाँह थे
मंदिर की सीढ़ियाँ थे
... बेहद संवेदनशील अभिव्यक्ति, आपकी ये रचना दिल को छूने वाली बेहद प्रभावशाली व अत्यंत प्रसंशनीय है। ... पता नहीं ऎसा क्यों महसूस हो रहा है कि इस रचना को लिखते-लिखते आपकी आँखें डबडबा गईं होंगी।
वे फक्कड़ थे ! कबीर थे !
... बहुत खूब।
आदरणीय श्री कृष्ण प्रसाद जी की स्मृति में आपने बहुत सुन्दर कविता लिखी।उनके लिये लिखी आपकी ये पंक्तियां मन को छू गयीं----
वे सूर्य को दिये जाने वाले अर्ध्य का
पवित्र जल थे
बरगद की छाँह थे
मंदिर की सीढ़ियाँ थे
पूनम
आदरणीय श्री श्रीकृष्ण प्रसाद जी की स्मृति में लिखी गयी यह कविता प्रसंशनीय है .ऐसे निस्वार्थ कर्मयोगी के बारे में जितना भी लिखा जाय कम है .
हेमंत कुमार
कितना सुन्दर लिखा है आपने...
मन में उतर गया,
भावपूर्ण प्रस्तुती ....एक एक शब्द दिल को छू रहा था.
संध्या जी,
एक बेटी की श्रृद्धांजलि, भाव विभोर कर दिया आपने।
पूज्य श्रीकृष्ण जी प्रसाद की सिद्धांतनिष्ठा और कर्तव्यपरायणता का हमारे जीवन में अधिष्ठापन ही महान स्वतंत्रता सेनानी और युगसुधारक को एक सच्ची और कृतज्ञ श्रृद्धांजलि होगी।
सादर नमन!
मुकेश कुमार तिवारी
"वे फक्कड़ थे ! कबीर थे !
15 अगस्त 1947 को पहली बार
दस घंटे सोये थे."
सब कुछ कह दिया इन पंक्तियों ने.....बेटी की कविता पिता के नाम बहुत पसंद आई.परिचय कराने के लिये धन्यवाद..
bahut hi sundar rachana.....
बेहद भावभीनी कविता.
aapki yah kavita maine May'09 ke AAJKAL mein "Avaran page " par padi thi. Apne jis tarah se poojya pitaji ko shradhanjai di hai wah anoothi hai shayad hi koi itni bahvpurn rachna dusri ho. Mujhe Nirala ji ki "sarosmriti " ka smaran ho gaya.
आपके पूज्य पिता जी को सादर नमन।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
is mahaan vyaktitv ko meraa sadar naman aur aapaka bahut bahut dhanyavaad is bhaavbheenee racanaa ke liye
वे सूर्य को दिये जाने वाले अर्ध्य का
पवित्र जल थे
बरगद की छाँह थे
मंदिर की सीढ़ियाँ थे
खेत में लगातार जुते हुए बैल थे
संघर्ष के बीच
जिजीविषा को बचाने की इच्छाओं की
प्रतिमूर्ति थे
वे राष्ट्र के निर्माण की कथा थे
बहुत ही भावपरक कविता संघर्ष की और त्याग की पराकास्ठा
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
आपने तो इस रचना के माध्यम से अपने पूज्य पिता जी के समस्त जीवन का चित्रण ही कर डाला....
आर्थिक नज़रिए से भले ही गांधी जी की तरह फक्कड़ रहे हों पर संस्कारों की जो तिजोरी छोड़ वह गए, उसे संभालना भी कितना दुष्कर कार्य है आजाद भारत के इस देश में......................
गांधी भी फक्कड़ से रहे, कबीर भी फक्कड़ से ही रहे पर आज भी उनके समकक्ष कोई नहीं ठहर पाता, फिर ऐसे महान आपके बाबू जी की म्हणता क़तर कैसे आंकी जा सकती है.
हमारी ओर से भी उन्हे हार्दिक विनम्र श्रद्धाजली ।
आशा है आप के पास उनके संस्मरणों का खजाना भी जरूर होगा, कृपया समय-समय पर उसे कड़ी बद्ध कर प्रस्तुत करने का प्रयास करें, तो मार्गदर्शन मिलेगा.
चन्द्र मोहन गुप्त
भावपूर्ण रचना
दो पुष्प श्रधांजली के मेरी तरफ से भी .
उनके पास जीवन के अंतिम क्षणों में
कोई सुन्दर मकान नहीं था
आखि़री सांस तक की लड़ाई के बाद भी
कोई बैंक बैलेंस नहीं था
जो उनके लिये चिन्तित दिखे
वे वक्त का मिज़ाज समझने वाले
सफल नज़रिया रखने वाले
दुनियादार लोग थे
उनके सधे अनुभव में उन्हें
समय के साथ चलना था
bahut khoob likhati hai .jeewan ke sangharso ko kitni achhi tarah darshaya hai .saath hi sadgi bhi .
भावभीनी श्रधांजलि। सुंदर काव्य। दिल से निकले जज़्बात।
जगमोहन राय
अद्भुत रचना .................
aap jharkhand mekaha se ho ji
ham ranchi se hai
आपका ब्लॉग देखा..आप जितना गहरायी में जा कर सोचती हैं उसे उतनी ही खूबसूरती और सादगी से कागजों पर उतरने की कला में भी माहर हैं आप..बस लगे रहिये...तस्वीरों का चयन भी आप ने बहुत ही मेहनत से किया है..... उस कच्चे रस्ते पर भी पढ़ी और गाँधी भी...बहुत ही प्रभावित करती हैं...आपने पूज्य पिता श्री श्रीकृष्ण प्रसाद की स्मृति में जो कुछ लिखा वह भी पढ़ा....दरअसल महान लोगों को कभी भी अपने विज्ञापन में कोई रुचि नहीं होती....यह एक हकीकत है...पर अगर उन महान लोगों के निकट रहने वाले ही उन के बारे में कुछ नहीं बतायेंगे तो ये एक अपराध होगा...आम लोग प्रेरणा किस से लेंगे..इस लिए उन के बारे में कुछ और लिखिए और लिखते रहिये....
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