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शुक्रवार, 26 जून 2009
सुबह
सूर्य का गोला आसमान पे उजले रंग से लिखता है -
सुबह
और चमक उठती हैं इस धरती पर जल की तरंगें
जीवन के रंगों से भर कर
तरोताजा हो उठती है हवा किरणों से नहा-धोकर
हल-बैल लिये किसान उतर पड़ते हैं खेतों में
नई उमंग के साथ नई फसल बोने को
निकल पड़ती हैं चींटियां अपने बिलों से कतारबद्ध
अपने गंतव्य की ओर ....और
परिन्दे कभी नहीं ठहरते अपने घोंसलों में
सुबह होने के बाद
.......लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.....!!
................................................
चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
....................................................................
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59 टिप्पणियां:
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.....!!
कितने सुंदर bhaaw हैं......लाजवाब
bahut khoob !
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.....!!
बहुत खूब ! क्या बात है !!
सुबह का इंतजार है कि
धान को मुँह धोना है
और ओस को उड़ना
फिर सोना है।
रात में जाग संवारना है
धान के धूल सने मुँह को।
फिर इंतजार करना है सुबह का।
... . . .
ऐसे ही लिख दिया। बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं ये:
'इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का'
अद्भुत।
.......लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!
-----------------------
अनोखा अन्दाज़ बहुत प्यारा
क्या बात है..उम्दा भाव एवं बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
बहुत सुंदर भाव लिये कविता । काली रात के बाद सुबह का हौना जरूरी है और वह हौगी क्यूं कि होती है ।
सुबह जरूर आयेगी सुबह का इन्तजार कर ।
गम की अंधेरी रात में दिल को न बे करार कर.....
प्राकृतिक प्रतिको से मन बिल्कुल बहने लगा मानो किसी तराई क्षेत्र मे पहुच गया जहाँ उंची उंची पर्वत और उसके बीच मै ..................आपकी कविता के साथ...
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का!!
लाजवाब!!!!!!!!
थोडा और लड़ ले अंधेरों से 'पाखी'
उसने कहा था सुबह जरूर होगी...
बहुत खूबसूरत रचना एक खूबसूरत अंदाज के साथ..
बहुत अच्छी लगी..
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का...
सच kahaa............ सुबह का intzaar sabko rahtaa है........... और सुबह jaroor आती है, lambee ghanee kaali रात के बाद............ behatreen rachnaa
बेहतरीन रचना
---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
ये तो प्रकृति का नियम है हर काली रात के बाद सुबह होती है,
गम के बाद ख़ुशी होती है !!
पर इसके लिए थोड़े साहस और थोड़े ढाँढ़स की जरुरत होती है !!
बहुत सुन्दर रचना है आपकी !!
रोज सुबह आयेगी,
शाम ढलेगी,
रात आयेगी
और
फिर सुबह होगी,
पर इन्तजार
खत्म न होगा।
संसार की
यही तो
नियति है
और
शायद
इसी
का नाम
दुनिया है।
धरती से जुड़ी कविता। किसान और हल का संबोधन कहीं अपने दिनों की याद दिलाता है। बहुत सुन्दर।
bahut HEE sundar
har baar kee tarah
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.....!!
्बहुत अच्छी बात कही है आपने ----सुबह तो हमारे अन्दर एक नई स्फ़ूर्ति लेकर आती है ।इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती ।
पूनम
निकल पड़ती हैं चींटियां अपने बिलों से कतारबद्ध
अपने गंतव्य की ओर ....और
परिन्दे कभी नहीं ठहरते अपने घोंसलों में
सुबह होने के बाद
......लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!
संध्या जी ,
आपकी चिंता जायज है ...जब चींटियों ,और परिंदों को सुबह की चिंता है तो ..
हम तो मनुष्य हैं ....अच्छी कविता .
हेमंत कुमार
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.
ये लाईने दिल को छू गई।
संध्या जी बेहद भावुक तरीके से आप लिखती है । इस बार का प्रसंग भी बेहद प्राकृतिक है । इस प्रसंग में आपने सुवह की जो भावभंगिमा की है लाजबाब है । अति सुन्दर धन्यवाद
kaafi dino baad aapki koi rachna baachne ko mili.
jin panktiyo ne prabhavit kiya vo kai tippanikaaro ne ullekhit kar diya he/ aapki rachna me gahara bhaav nepathya me apni baat kahataa hua prateet hota he/
os ko bhi chahiye subah taaki vo bhi chamke, khile..// aour subah he ki...intjaar me ked he.
.......लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!
Sandhya ji mere vichar me ye panktiyan hi kavita ki sabse mahatvpurn panktiyan hain.
Aur yah subah yun hi nahin aane wali...
र्य का गोला आसमान पे उजले रंग से लिखता है -
सुबह
और चमक उठती हैं इस धरती पर जल की तरंगें
जीवन के रंगों से भर कर .
bahut khoob likhati hai aachchha laga padhkar .
बेहतरीन पोस्ट की निरंतरता कायम रखी है आपने !
लेकिन मेरे दिल में आपकी पिछली पोस्ट (वो फक्कड़ थे...) की अनुभूतियाँ इस कदर गहरी हैं कि उनसे मैं कभी मुक्त नहीं हो पाऊंगा !
आपकी इस रचना की आख़िरी पंक्तियाँ सब कुछ कह जाती हैं :
लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!
सवाल ये भी है कि हम इस सुबह के लिए किसका इन्जार कर रहे हैं ....... अवतारों का युग बीत चूका है .. कौन लाएगा सुबह ?
आज की आवाज
Bahut sundar kavita...Mere blog par meri bhi Picture dekhen.
Mere vichar me aapki kavitaon me sabse khas unka ant hota hai.Is baar bhi aapne nirash nahin kiya.
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.....!!
AAS BHARI PANKTIYAN
wakai behad...aandolit karne waali rachna...kaaphi dino se to subah hui hi nahi...ye man ki bechaini ko pradarshit karta hai....
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.....!
हाँइन्तज़ार तो रहता है पर कब हुई ये पता नहीं चलता बहुत गहरे भव लिये सुन्दर रचना आभार्
Bhaut Khoobsurat
"बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद"
रचना बहुत अच्छी लगी....
इस सुंदर रचना के लिए साधुवाद.
bahup behtareen rachna pesh ki hai aapne
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
.......लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!
....apke mantavya samajh gaye !!
...aur samajh kar der tak manthan karte rehe !!
acchi rachna ke liye badhia !!
aehad sundar abhivykti ashavadi soch .
apke blog par phli bar hi aana hua .
achha likha hai aapne .
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का.
बहुत खूब !
"बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद"
लाजवाब..रचना बहुत अच्छी लगी....
kavita bandh gaee. aur adhik fail sakti thi. to bhi, badhaee.
last paragraph seriously bahut achcha hai!
lekin afshos ki abhi tak subah nahi hui........ sachmuch sandhyaji
bastawikata me jeene wala kawi hi prakriti ki sundarata bhi dekhata hai to use wo bhi dikhai de jata hai jo aam adami ki najaron se nahi dekha ja sakta .badhai.
Bahut sundar rachana..really its awesome...
Regards..
DevSangeet
"नई सुबह और गयी शाम में फर्क यही है ..
उम्मीद जगाती एक बुझाती जो एक गयी है!!"..
-अच्छी रचना !!
संध्या जी,
इन पंक्तियों को गुनगुनाने का मन कर रहा है :-
" वो सुबह कभी तो आयेगी..."
बहुत अच्छी कविता।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
sundar abhivyakti
रात के बाद सुबह का.. ....बहुत ही सुन्दर कविता ....
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का
अति सुन्दर
ऐसा लगा यह एक अच्छी कविता की शुरुआत मात्र है. जिन खूबसूरत भावों को लेकर आगे बढीं, उसे और आगे ले जाना चाहिये था. कविता बहुत कुछ कहना चाहती है, उसे और मौका दें. (this is not an expert view, just a feeling.)
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पहले से भी आप लिखती रही है । खासकर प्रकृति के साथ आपकी कविताई सोच बेमिसाल है ।
बेहद जरूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
बहुत अच्छा लिखा है आपने । शुक्रिया
लम्बी काली रात के बाद जरूरी है सुबह होना लेकिन यहाँ अभी सुबह नहीं हुई ,बहुत अच्छा चित्रण |परिंदे कभी नहीं ठहरते अपने घोंसलों में सुबह होने के बाद |किसान निकल पढ़ते हैं हल बैल के साथ |अच्छी रचना
सचमुच काफी अच्छे भाव बने हैं। बधाई।
सचमुच काफी अच्छे भाव बने हैं। बधाई।
पिंकी इस देश की बेटी हैं जिसे कुछ दरिंदो ने इस हालात में पहुचा दिया हैं जहां से बाहर निकलने में आप सबों के प्यार और स्नेह की जरुरत हैं।
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी।
बहुत अच्छा लिखा है.
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