प्रिय मित्रो , आपने शिकायत की है कि मैंने आपको मैथिलीशरण गुप्त सम्मान के बारे में जानकारी नहीं दी। इसके लिये मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। दरअसल मैंने सोचा कि समाचार पत्रों के माध्यम से तो इसकी जानकारी आप सबों को हो ही जायेगी। खैर विलम्ब के लिये क्षमा याचना सहित सहर्ष सूचित कर रही हूँ कि दि0, 03 अगस्त, 09 को राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त की जन्म तिथि के पावन अवसर पर हिन्दी भवन, नई दिल्ली में मेरी पुस्तक ,कविता संग्रह, "बना लिया मैंने भी घोंसला"(राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली) को राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त विशिष्ट सम्मान-09 प्रदान किया गया । उक्त पुस्तक का चयन पिछले पाँच वर्षों में प्रकाशित 100 काव्यकृतियों में से किया गया। सभी पाठकों एवं शुभेच्छुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए इस पुस्तक की शीर्षक कविता आप के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ -
बना लिया मैंने भी घोंसला
घंटों एक ही जगह पर बैठी
मैं एक पेड़ देखा करती
बड़ी पत्तियाँ...छोटी पत्तियाँ...
फल-फूल और घोंसले ....
मंद-मंद मुस्काता पेड़
खिलखिला कर हँसतीं पत्तियाँ...
सब मुझसे बातें करते!!
कभी नहीं खोती भीड़ में मैं
खो जाती थी अक्सर इन पेडों के बीच!
साँझ को वृक्षों के फेरे लगाती
चिड़ियों की झुण्डों में अक्सर
शामिल होती मैं भी!
...और एक रोज़ जब
मन अटक नहीं पाया कहीं किसी शहर में
तो बना लिया मैंने भी एक घोंसला
उसी पेड़ पर!
.................................
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रविवार, 9 अगस्त 2009
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66 टिप्पणियां:
बधाई एवं शुभकामनाएं।
बधाई !
अच्छी खबर !
दर असल भाषायी समाचार पत्र इतने क्षेत्रीय हो गए हैं कि दूसरे इलाकों की खबरें मिल ही नहीं पाती हैं.
पुन: बधाई !
प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए ढेर सारी बधाई।
और कविता तो अच्छी है ही।
aapko haardik badhaai !
आपको बहुत-बहुत बधाई!
आदरणीय संध्या जी,
हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं स्वीकार करें...
कविता सचमुच बहुत अच्छी लगी...पुस्तक पढने की अभिलाषा है...
यदि संभव हो तो कुछ और कविताए ब्लॉग पर दे ...
बहुत बढ़िया खबर सुनाई.
आपको अनेक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
ऐसे मौकों पर मिठाई खिलाने का भी चलन है. :)
बधाई
बधाई
आपको बहुत-बहुत बधाई!
regards
प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलाने पर हार्दिक बधाई !
उम्मीद है की अभी ऐसे बहुत सारे पड़ाव आयेंगे !
शुभ कामनाएं
मिठाई खाने आऊँ या मेल से भेजेंगी ?
दिल खोल कर बधाई... स्वीकार करें...
मीत
Are Waah, BAHUT BAHUT BADHAAYI.
{ Treasurer-T & S }
AAPKO BAHOOT BAHOOT BADHAAI AUR SHUBHKAAMNAAYEN..... BHAGVAAN AAPKO AUR OONCHAA STAAN DE SAAHITY JAGAT HAIN.........
BAHOOT HI SUNDAR RACHNA HAI AAPKI...
behad khubsoorat our sundar bhaw .....jisame bahut hi gaharai hai
बहुत बहुत बधाई. सच कहाँ आपने कहीं, साहित्य में भाव प्रधान है.उन्मुक्त होकर ही व्यक्त हो पाता है रचनाकार. पुनः बधाई और संग्रह से हो सके तो कवितायेँ यहाँ दें. आग्रह.
पुरस्कार के लिए बधाई और शुभकामनाएँ.
komalata ko sparsh karati hui .main to isme kho gayi rahi ,prakriti ki sundarata moh hi leti hai .sundar .
कभी नहीं खोती भीड़ में मैं
खो जाती थी अक्सर इन पेडों के बीच!
Yah to meri anubhuti hai!
Samman ke liye dher sari badhai.
पुरस्कार के लिए ढेर सारी बधाई।
बहुत बहुत बधाई .....चमन स आ रही है खुशबु ए बहार .......
बहुत -बहुत बधाई ...ईश्वर आपके ऊपर ऐसे ही सम्मान की बारिश करता रहे ....
और एक रोज़ जब
मन अटक नहीं पाया कहीं किसी शहर में
तो बना लिया मैंने भी एक घोंसला
उसी पेड़ पर!
Sandhya ji,
hardik badhai evam shubhkamnayen.apkee yah sheershk kavita to apke andar ke prakriti prem ka dyotak hai.
Poonam
jab bhi kisi sahityik krati ko puruskrat kiya jata he, man aanand se vibhor ho jata he// aapko badhaai/
pustak ke prati ek lalsa jaag uthi ki kya padhhne ko prapt ho sakti he? kese? krapiya sujhaiye/
vvvसम्मान के लिए बधाई एवं हार्दिक शुभकामनायें .शीर्षक कविता बहुत ही अच्छी लगी .
बधाई संध्याजी, बहुत बहुत बधाई ।
Jharkhand ke naam ko aur age le jayen.Bahut badhai.
bhut bhut badhai
kavita achhi hai .aur kvitaye pdhne ki utsukata hai.
एक महाप्रतिष्ठित सम्मान से अलंकृत होने पर हमारी हार्दिक शुभकामनाएं.
जन्माष्टमी और स्वतंत्रता-दिवस की भी हार्दिक बधाइयाँ.
बधाई!...बधाई!!.....बधाई!!!..............
Mubarak ho...mithai bhi to bhijvayen !!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. "शब्द सृजन की ओर" पर इस बार-"समग्र रूप में देखें स्वाधीनता को"
धन्यवाद भूल की ओर ध्यान दिलाने के किये,
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बधाई पुरस्कार और सुन्दर कविता दोनों के लिए -
...और एक रोज़ जब
मन अटक नहीं पाया कहीं किसी शहर में
तो बना लिया मैंने भी एक घोंसला
उसी पेड़ पर!
Bahut badhaii evam Subhkamnayen !!!
kavita behad sundarta se rachii gayi hai !!
आपने तो अपनी इस कविता में मनुष्य के सारे गुणों की व्याख्या ही कर दी है..
बहुत खूब..बधाई!
bahut bahut badhaaee.
संध्या जी,
ऐसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई
प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए ढेर सारी बधाई......
bahut barhia... isi tarah likhte rahiye
http://hellomithilaa.blogspot.com
mithilak gap maithili me
http://mastgaane.blogspot.com
manpasand gaane
http://muskuraahat.blogspot.com
Aapke bheje photo
संध्या जी आपकी नेहयुक्त टिप्पणी के लिये शुक्रिया.
आपके कविता संग्रह को सम्मान प्राप्त होगा यह हम सबके लिये गौरव की बात है. आपको आत्मिक बधाई.
संग्रह से प्रस्तुत रचना बहुत अच्छी है.
बड़ी खुशी की बात है, बधाई!
Bahut Bahut Badhayi...is uplabdhi ke liye..
bhagwaan kare aap nirantar isi tarah sahity jagat me agrsar hoti rahe..
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
"बना लिया मैंने भी घौसला "को राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त विशिष्ट सम्मान-09 प्रदान होने पर बहुत बहुत बधाइयाँ
bahut-bahut badhai apako.
kavita achchhi hai.
smaan milne ke liye aapko badhayi
sabse pahle to badhayi...
ek afsos bhi jahir karna chahta hun... aaj hindi ka ye haal hai ki sammanit pustak bhi dukano mein nahi dikhti jabki stall english ke ajeebo-garib magzino se bhare pade hai...
aapki kavita pasand aayi... sambhav ho to pata bataye jahan se main aapka kavita-sangrah le sakun...
बहुत-बहुत बधाई!
India Today me samman ke bare me padh chuka tha.bahut bahut badhai.idhar dubara delhi ana ho to suchit karengi.
akhilesh sharan
बेहतरीन कविता... आपको बधाई.. चयनकर्ताऒं को साधुवाद लेकिन आप दिल्ली आई और कोई सूचना भी नहीं दी.. खैर.... कोटिशः बधाई..
प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
संध्याजी हार्दिक बधाई, ऐसे सफलता के सोपान आप के सानिध्य में गौरान्वित होते रहें, यही कामना है. मुझ जैसे नए ब्लॉगर के लिए आपका उत्साहवर्धन कुछ अलग करने की प्रेरणा देता रहेगा.
मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें
कौशल किशोर
magahdes.blogspot.com
आपकी कविता अच्छी लगी ।
गुंजअनुगूंज पर आने के लिए धन्यवाद ।
हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत दिन हुए, कुछ नया लिखिए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त विशिष्ट सम्मान-09 ,से सम्मानित किये जाने पर मेरी शुभकामनायें स्वीकार करे.
कभी नहीं खोती भीड़ में मैं
खो जाती थी अक्सर इन पेडों के बीच!
और एक रोज़ जब
मन अटक नहीं पाया कहीं किसी शहर में
तो बना लिया मैंने भी एक घोंसला
उसी पेड़ पर!
मन को छूती सुन्दर रचना
इधर काफ़ी व्यस्त रहा
क्षमा चाहता हूं
सम्मान के लिये बधाई
और ढेरों शुभकामनायें
Dil se shubhekshayein !!
संध्याजी, पहले तो आप मेरी तरफ से भी ढेरों बधाईयाँ स्वीकार करें,
मेरे ब्लॉग पर आकर हौसला आफजाई के लिए आपका आभारी हूँ...
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ....
आप की रचनाएँ रुचिकर लगी....
संध्या जी,पुरस्कार के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई ।बहुत ही सुन्दर कविता है।मेरे ब्लॉग पर आने ओर टिप्पणी करने के लिए भी आप का धन्यवाद ।
badhai .......
aur shubhkaamnayen..........
और एक रोज़ जब
मन अटक नहीं पाया कहीं किसी शहर में
तो बना लिया मैंने भी एक घोंसला
उसी पेड़ पर!
dil ko chhoo gayi yeh line......
sandhya ji
hardik badhai
acha laga ek sache kavi ka samman
aap ki ye panktiyan kitna kuch keh jati hai
aapke kavi ke bare mein mein esper likhna apne bus mein nahi samajta ...bahut badhai...wah kya likhti hai aap......
कभी नहीं खोती भीड़ में मैं
खो जाती थी अक्सर इन पेडों के बीच!
bahut bahut shukria,
samman ke liye mubarakbad qubul karein;
bade jatan se banaya hai aashiyan(GHONSALA)tune,
ilahi barq ko is baat ka pata na lage.
शुरु में लगा कि यह तो एक रोमैंटिक कविता है, लेकिन फिर गौर से देखा तो वहाँ उस रोमांस के इर्द-गिर्द चिड़ियों और पेड़ों के बीच बसी वो इंसानी बस्ती भी नजर आई जो आहिस्ता-आहिस्ता पेड़ों और चिड़ियों की दुश्मन बनती जा रही है. हम चिड़ियों और पेड़ों के बीच रहते-रहते इसके दुश्मन क्यों हो जाते हैं?
(!)
बड़ी खूबसूरत कविता.
-अशोकपुत्र नमितांशु
आज आपकी ये रचना पढ़ी....देर से ही सही ...पर मन को छू गयी....बहुत अच्छी रचना
SANDHYA DIDI
आपको अनेक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
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