सन्दूक से पुराने ख़त निकालती हूँ
कुछ भी नहीं बदला...
छुअन
एहसास
संवेदना!
पच्चीस वर्षों के पुराने अतीत में
सिर्फ़
उन उँगलियों का साथ
छूट गया है...
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मेरे बारे में
शनिवार, 8 नवंबर 2008
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54 टिप्पणियां:
बढ़िया कल्पना है . धन्यवाद्.
सुन्दर .......
chahe waqt age jaye,bhavna wahi rehti hai,bahut khub
बड़ी गहरी बात!!
चार लायनों में अथाह वेदना की अभिव्यक्ति बहुत कम जगह देखी जाती है !शुभकामनायें !
chand lafjo me aapne to zindagi ki dastan suna di,,... bahot hi dard bhara hai ..bahot khub likha hai aapne .......
aapka mere blog pe swagat hai ummid karta hun aap padharengi.......
Bahut badhiya.
सुंदर |
पच्चीस वर्षों के पुराने अतीत में
सिर्फ़
उन उँगलियों का साथ
छूट गया है...
बहुत प्रभावी लिखा है. सच्ची अनुभूति.
संदूक से पाती नहीं आपने.... एक जीवन निकाला...
सहज अभिव्यक्ति....बिना आडम्बर...के.
बहुत सुंदर लिखा है!
सुंदर रचना के लिये आपको बधाई
बाजार में जब सभी बिकने वाली
चीजें खरीदी जा रही थीं
तुम्हारा अंतिम प्रेम पत्र छिपाने को
मैंने खरीदा एक संदूक
जब बड़ी कविता बड़े शिल्प बड़े कैनवस
बड़े हादसे बड़ी खुशियां और बड़े फरेब
बदले जा रहे थे रुपयों में
एक संदूक में बदल लिए मैंने रुपए
तुम्हारे जैसा छिछोरापन
तुम्हारे जैसी लालसाएं
तुम्हारे जैसी मुस्कराहटें
झांक रही थीं अपने-अपने फ्रेम से
उन्हीं में झांक कर पढ़ा मैंने
उसी बाजार में तुम्हारा प्रेम पत्र
और खऱीद लिया एक संदूक ताकि
जब कांपने लगें मेरी उंगलियां
तुम्हारी छुअन पोर पोर बांचे आंखर
ताकि जब पसीज उठे बाकी संवेदना
पच्चीस साल बाद उंगली बदल जाने का
मुझे एहसास न हो
aapke shabd kavi banane ka kaam karte hain. Dhanybad.
जीवन के सच को साथॆक तरीके से अिभव्यक्त िकया है । अच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
दिखने में छोटन लगे घाव करे गंभीर।
बेहद भावुक कर देने वाली रचना ।
बहुत अच्छा लिखा है आपने. बधाई.
अच्छी है रचना
bahut khubsurat
bahut kuch kahdiya
sirf iten kum shaboan me
regards
समय के साथ एहसास की
बदलाहट को सुंदर अभिव्यक्ति दी है आपने.
....पर कमाल यह है की चंद शब्दों में
उस फ़र्क का सबब भी बयां कर दिया.
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शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
bahut achchhi kavita hai.pachchis varshon ko apane bahut kam kar diya. jisaka ehasas kai sadiyon tak jata hai.badhai.
बेहतरिन!
आपकी पंक्तियां आज़ दिल को छू गईं कुछ कहने को शब्द ही नहीं हैं ...
अत्यन्त भाव प्रधान ,करुण,सम्बेदनशील
ultimate emotional poem....
nice poem
Bouth Aacha post Hai Ji
Shyari is here plz visit karna ji
http://www.discobhangra.com/shayari/romantic-shayri/
good poetry!
Hi Sandhyaji, beautiful poem. Sahi kaha aapne...kuch bhi nahi badla...bus waqt aage bhag jata hai.
आपने छोटे में बहुत लिखा. लाजवाब, दिल को छू लेने वाली
kya baat hai. gagar me sagar. narayan narayan
सुन्दर
खुशनसीब है कि आपके जमानें में कम से कम चिट्ठियां आया करती थी. हमारी पीढी तो इससे वंचित ही रह गई.
anguli to aapke saath hi hai...unhe thoda sa ye kaam bhi de dijiye...unko bhi atit ki chhuwan kaa ahasaas ho jayegaa...ek chhoti-si...nanhi-si..pyaarisi..kavita... acchhi lagi...sach...
कुछ भी नहीं बदला...
छुअन
एहसास
संवेदना!
wah ,bahut khoob
आप सब का सहयोग इसी तरह मिलता रहा तो कारवां बढता रहेगा आप अपनी कविताएं कारवां पर भी दें
bahut sahi kaha,kuch nhi chutta bas ungliyon ka sath hi chutta hai
वक्त के हाथों हम बदल जाते हैं हमारा अतीत वो सामान वही रहेता है
वो एहेसास तक जिन्दा रहता है .....
वक्त की ताकत को समझा दिया.........
बहुत उम्दा............
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !! इस पर क्लिक कीजिए
मेरी शुभकामनाये आपकी भावनाओं को आपको और आपके परिवार को
आभार...अक्षय-मन
बहुत खूब।
वास्तव में बदलाव सिर्फ वाहय रूप में होता है। जो मन बदल जाए, वह मन नहीं बेमन होता है, बेईमान होता है।
सन्दूक से पुराने ख़त निकालती हूँ
कुछ भी नहीं बदला
छुअन
एहसास
संवेदना!......... भावनाओं की मूक अभिव्यक्ति कम ही देखने को मिलती है..बधाई स्वीकारें !!
Dil ki gahraiyo ki aavaj paathak tak pahuchana kathin kaam hai ...jo aapne bakhoobi nibhaya hai....badhai..
मैंने आज पहली बार आपके ब्लॉग को पढ़ा बहुत अच्छा लिखा.
aapki ye kavita apne aap mein ek kahani hai .
bus koi inme doob jaayen aur kahin kho jaayen ..
itni acchi kavita ke liye badhai..
regards,
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
"...mn ke kisi kone mei sehma saada.sa ehsaas, waqt ki dhara ke sath beh raheeN khwahishoN ki pakeeza karvatieN, halaat ki ravaayat ko nibhate hue imaandaar fraaeez...inn sb ka bahot hi shaeesta aur nafees izhaar hai aapki ye kavita..."
mubaarakbaad...!!
---MUFLIS---
आपकी कुछ कविताएँ पढ़ी...बहुत अच्छी सोच है आपकी. साधुवाद
Mantamugugdh kar diya aapne.
chaar line main he aapne sab kuch keh diya...
bahut hee sundar aviwaekti hai.....
gahari panktiya.n....! gahre bhav..! prashansha ko shabda nahi.
Meri tippani pachaswi hai jise dene ke liye main badhai ka patr hoon.Vaastav me achchi kavita.
प्रेम विद्रोह की जननी है और प्रकृति का नैसर्गिक गुणधर्म भी। संघर्ष और द्वंद्व के कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने भी ‘उर्वशी’ जैसी रचना के माध्यम से अपने प्रेम को शब्द दिये जिस पर उन्हें ज्ञानपीठ जैसे पुरस्कार से नवाजा भी गया।कहने का गरज़ इतना ही कि कोई भी उससे अछूता नहीं। पर उसकी संवेदना काल की चोट से आहत होकर धाराशायी होते रहे हैं, यही सांसारिक प्रेम की व्यामोह या कहे उसकी परिणति या नीयति है पर हृदय में उसका अक़्स तो लम्बे अरसे तक विद्यमान रहता ही है ! बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति है इस कविता में पर मैं संध्या जी से गुजारिश करूँगा कि इसमें उनके अनुभव के और भी कई तार होंगे जो छूट गये प्रतीत होते हैं जिससे कविता को विस्तार देकर उन्हें बढ़ाना चाहिये।-सुशील कुमार।
लाज़बाब इससे अधिक कुछ कहना अशक्य है
aap ki rachna pad kar ankh main ansu aa gaye or dil tak chot hui
bhut achchha kahna kam hai
adwatiy
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