करवट बदल कर सो गई
उस स्त्री के बारे में तुम्हे कुछ नहीं कहना!
जिसके बारे में तुमने कहा था
उसकी त्वचा का रंग सूर्य की पहली किरण से
मिलता है
उसके खू़न में
पूर्वजों के बनाये सबसे पुराने कुएँ का जल है
और जिसके भीतर
इस धरती के सबसे बड़े जंगल की
निर्जनता है
जिसकी आँखों में तुम्हें एक पुरानी इमारत का
अकेलापन दिखा था
और....जिसे तुम बाँटना चाहते थे
जो... एक लम्बे गलियारे वाले
सूने घर के दरवाजे पर खड़ी
तुम्हारी राह तकती थी!
........................................................ ं
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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008
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11 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी कविता
bahut pyari kavita likhi hai aapne. Aaj pahli bar Aapka blog dekha, apne mann jasi baat se bahut khushi hui.
तकते-तकते राह आँख थक गई होगी....
रूह जिस्म से निकल कर
कहीं और चली गई होगी.....
आने वाले के कदम.....
किसी और दिशा में......
मुड़ गए होंगे.....
रात भी थक कर....
सो गई होगी.....
सुबह किसी बच्चे-सी निकल,
मचल गई होगी.....
आने वाला कुछ सोचता होगा..
सबा बहकती हुई-सी कानों में
कुछ कहती-सी होगी....
जिस्म से इक धुंआ-सा
निकलता होगा....
सोच में कुछ पिघलता....
हुआ-सा होगा....
आने वाला आता ही होगा....
साँस भी थम-सी गई होगी...
आने वाला बस.....
अभी ही आने को है......
दिल की हर धड़कन...
सुबक कर रह गई होगी....
आने वाला..........
बस आया ही आया.....
मगर ....ऐ दिल
आने वाले को गर ....
आना ही होता...
तो अब तक आ ही ना जाता...!!
Bahut achchi kavita
bahut achchhe se apane is kavita ko likha. stri vimarsh ki tarah se. badhai.
बहुत ही अच्छी कविता
Beautiful Poetry!
बहुत बढ़िया ।
maine pehli bar is ghar ka rasta dekha...itni achhi kavita ke baad to nigaah bar bar idhar uthegi
meri spasht manyata hai ki stree anubahv ko ham purush kabhi us shiddat aur saafgoi ke sath nahi vyakt kar sakte jaise ek stree
hal me padhi ek philistini yuva kaviyitri ki kavita ki aisi hi kuchh panktiyan apko sunata hun jo koi purush sau janam me bhi nahi likh sakta:pyar ke bare uska najariya tha bilkul ganwai kisan jaisa...adhiktar log karte hain pyar kisi shikari jaisa...aur shikariyon jaisa hi jibah kar dalte hain...apni nigah me anewali sabse priy chaahat ko hi...
Aapne bahut dino se kuch bhi nahi dala hai...!Waiting for new one.
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