
चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे
और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं
अब यह आदमी पर है कि वह
बोले ...चीखे या फुसफुसाये
फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है!
बहुत कम लोग बोलते हैं यहाँ और...
चीखता तो कोई नहीं के बराबर ...
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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63 टिप्पणियां:
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
शब्द जब मृत घोषित होते हैं तो आदमी और आदमियत मृतप्राय हो जाती है
बेहतरीन अभिव्यक्ति
पहली बार आपके ब्लॉग की यात्रा की ...रोचक रही .....आपकी यह रचना ....एक गहरी सोच रखती है ...अछे भाव लिए हुए एक सुन्दर प्रस्तुति .......सत्य के करीब ...एक शानदार रचना ...शुक्रिया बस इसी तरह लिखते रहे
http://athaah.blogspot.com/
bahut hi umda rachna
बहुत गहरी रचना...कई बार पढ़ी. बधाई.
sahi likha
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं.........
बिलकुल सही कहा आपने........ बहुत अच्छी लगी यह कविता....
Zaahir kare na kare,manhi man zaroor bolta rahta hai admi!
संध्या जी ! इस कविता मे आपने बहुत तीखे सच का संकेत दिया है .... हार्दिक बधाई । बहुत दिन बाद ! कहाँ थीं ?
बहुत ही उम्दा और गहन प्रस्तुति।
हम तो चीखेंगे..., क्योंकि हमारे पास इस रचना की तारीफ के लिए शब्द हैं...
बहुत सुंदर.. रचना... अनछुई सी..
आदमियत पर करारी चोट - आभार
संध्या जी , विचारोपरान्त सर्जना . प्रशंसनीय ।
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
सही है .... बहुत बढ़िया !!
कमाल की अभिव्यक्ति .. सच है आदमी ही शब्दों को कुचलता है ... बर्बाद करता है ... मारता है ...
इसे कहते हैं कविता।
यदि शब्दों से ही तैयार होती है विचारधारा भी तो कई महानुभावों ने मुझसे और आपसे पूछे बगैर ही उसे फांसी पर लटकाने का काम भी कर दिया है। आपकी कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा। कविता की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें आरती नहीं है।
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!behtrin ,jawab nahi aur sach hi to hai ,shabd ka rishta aesa hi hai .
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
बहुत खूब.....
और जो चीख होती है उनमें शब्द नहीं होते....
सचमुच बहुत कम लोग ही बोलते हैं, सिर्फ फुसफुसाहट है यहाँ, बहुत ही सुन्दर भाव लिए है ये रचना, और एक सवाल भी खड़ा कर दिया है!
in shabdon ke aagen ab koi shabd nahin hai.... kam-se-kam mere paas.
भले ही षडयंत्र रच लें, लेकिन शब्द कभी मरते नहीं.शब्द की शक्ति उसके भावों में है.
sandhya ji, bahut hi behatreen abhvykti.sachjabshbd mrit ho jate hai tolagata hai insaan aur insaaniyatbhi saath chhodne lagate hai.sachchai liye hui sundar prastuti.
poonam
चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे
....behtreen prastuti.....
Satya Vachan!
अच्छा लगा ! शब्द की भी संसकृति होती है ! शब्द को समझ्ना माने इसे ज़िन्दा रखना !
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
bahut khub rachna....
sahi baat hai..
aadmi chup nahi reh sakta....
regards
http://i555.blogspot.com/
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
शब्द और इन्सान के रिस्ते का इतना गहरा विश्लेषण,
बहुत सुंदर संध्या जी ।
बहुत सुन्दर रचना है ! इन्सान को शब्द की और शब्दों को इन्सान की ज़रुरत हमेशा रही है और रहेगी ... अपने विचार प्रकट करने का यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण जरिया है ... इसलिए इसेनकार नहीं सकते !
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
...बहुत खूब लिखा अपने...शायद सच भी यही है...सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई !!
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
वाह! क्या बात कही है!
sundar rachna
abhar....................
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! लाजवाब !
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
एक दम सटीक बात
फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है....!
कमाल की सोच है... सोचने पर मजबूर करती है... बधाई....!
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
जीवंत और सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
आज मैंने जितनी भी पढ़ें उनमे सबसे बेहतरीन कविता संध्या मैम..
फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है!
बहुत कम लोग बोलते हैं यहाँ और...
चीखता तो कोई नहीं के बराबर ...
bahut kuch kah diya apne!
पहली बार आपके ब्लॉग की यात्रा की ...रोचक रही ..
DHANYAWAAD SANDHYA DIDI JI BLOG PAR ANE AUR AUR MERA HOSLA BADHANE KE LIYE
UMEED HAI AGE BHI MERA HOSLA BADHAYEGE
SANDHYA DIDI AAPNE BAHUT HI SUNDER LIKHA HAI........
ये आदमी ही है जो बार-बारशब्दों को मृत घोषित करने काषड्यंत्र रचता रहता है
..वाह !क्या खूब !
गहन भाव लिए उम्दा प्रस्तुति!
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
शानदार अभिव्यक्ति......
shbd ..tarkash ke teer hai! sundar rachna !
अद्भुत ...
लेकिन लाजवाब !!
ये शब्द ही हैं जो इंसान को अपने मायाजाल में घेरे रहते हैं और इंसान न चाहते हुए भी इनका ताना बाना बुनता रहता है
आपकी इस रचना से प्रेरित हो कर मैंने भी कुछ पंक्तियाँ लिखी है,www.mathurnilesh.blogspot.com पर देखें!
---शब्द भी अनादि है आदमी भी ( वस्तुत: आत्मा ही ’आदमी’ है--अनश्वर ) आदमी ही आवश्यकतानुसार बोलता , फ़ुसफ़ुसाता, चुपरहता, चीखता है; शब्द आदमी की शक्ति है।
---बहुत गहरी बात कही गयी है,कविता में-- बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी.
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
...अद्भुत...शानदार प्रस्तुति..बधाई.
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'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
sachmuch chup nahi rah sakta aadami.
aadmi ki fitrat he yah, haalanki apni is bemisaal fitrat ko usane apne haatho hi khatm karne ka dussaahas bhi kiya he. shayd tabhi shadyantr banaataa he aadmi....
bahut achchi abhivyakti he aapki rachna..
...अदभुत भाव ... प्रसंशनीय रचना !!!
वाह संध्या जी.... भावपूर्ण रचना... साधुवाद स्वीकारें..
अच्छी और गहराईपूर्ण रचना । बधाई ।
Vandanaji, katu ho lekin yahi sach hai..par kisiki cheenkh pe bhi dhyan na dena yah bhi aadmiki fitrat hai!
और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं
...Bahut sahi kaha apne..sadhuvad !!
जरुरत के हिसाब से षड्यंत्र रचता रहता है आदमी. अनावश्यक जरूरतें उसे मृत कर देती है.
bahut khoob :)
http://liberalflorence.blogspot.com/
Wakai sshabd sath nahi chhodte, buri yaad kahein ya ishwar ka ashish
bahut achchhi rachna
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
बेहतरीन अभिव्यक्ति
इन्सान के पास तो आज वो शक्ति है की वो किसी को भी मृत घोषित कर रहा है चाहें शब्द हो या भावनाएं,मन हो या विचार
सशक्त कविता.
अब यह आदमी पर है कि वह बोले चीखे या फुसफुसाए..
..वाह!
कित्ती प्यारी कविता और प्यारा सा चित्र भी.
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और हाँ, 'पाखी की दुनिया' में साइंस सिटी की सैर करने जरुर आइयेगा !
I like your poem very much.
चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे
और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं
अब यह आदमी पर है कि वह
बोले ...चीखे या फुसफुसाये
फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है!
www.kuchkhaskhabar.blogspot.com
चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे
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