गुरुवार, 6 मई 2010

चुप नहीं रह सकता आदमी





चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे

और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं

अब यह आदमी पर है कि वह
बोले ...चीखे या फुसफुसाये

फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है!

बहुत कम लोग बोलते हैं यहाँ और...
चीखता तो कोई नहीं के बराबर ...

शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

...............................................................
चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
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63 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
शब्द जब मृत घोषित होते हैं तो आदमी और आदमियत मृतप्राय हो जाती है
बेहतरीन अभिव्यक्ति

Ra ने कहा…

पहली बार आपके ब्लॉग की यात्रा की ...रोचक रही .....आपकी यह रचना ....एक गहरी सोच रखती है ...अछे भाव लिए हुए एक सुन्दर प्रस्तुति .......सत्य के करीब ...एक शानदार रचना ...शुक्रिया बस इसी तरह लिखते रहे

http://athaah.blogspot.com/

दिलीप ने कहा…

bahut hi umda rachna

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहरी रचना...कई बार पढ़ी. बधाई.

Tej ने कहा…

sahi likha

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं.........


बिलकुल सही कहा आपने........ बहुत अच्छी लगी यह कविता....

kshama ने कहा…

Zaahir kare na kare,manhi man zaroor bolta rahta hai admi!

सुशीला पुरी ने कहा…

संध्या जी ! इस कविता मे आपने बहुत तीखे सच का संकेत दिया है .... हार्दिक बधाई । बहुत दिन बाद ! कहाँ थीं ?

vandana gupta ने कहा…

बहुत ही उम्दा और गहन प्रस्तुति।

मीत ने कहा…

हम तो चीखेंगे..., क्योंकि हमारे पास इस रचना की तारीफ के लिए शब्द हैं...
बहुत सुंदर.. रचना... अनछुई सी..

बेनामी ने कहा…

आदमियत पर करारी चोट - आभार

अरुणेश मिश्र ने कहा…

संध्या जी , विचारोपरान्त सर्जना . प्रशंसनीय ।

अमिताभ मीत ने कहा…

और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

सही है .... बहुत बढ़िया !!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कमाल की अभिव्यक्ति .. सच है आदमी ही शब्दों को कुचलता है ... बर्बाद करता है ... मारता है ...

राजकुमार सोनी ने कहा…

इसे कहते हैं कविता।
यदि शब्दों से ही तैयार होती है विचारधारा भी तो कई महानुभावों ने मुझसे और आपसे पूछे बगैर ही उसे फांसी पर लटकाने का काम भी कर दिया है। आपकी कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा। कविता की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें आरती नहीं है।

ज्योति सिंह ने कहा…

शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!behtrin ,jawab nahi aur sach hi to hai ,shabd ka rishta aesa hi hai .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

बहुत खूब.....

और जो चीख होती है उनमें शब्द नहीं होते....

nilesh mathur ने कहा…

सचमुच बहुत कम लोग ही बोलते हैं, सिर्फ फुसफुसाहट है यहाँ, बहुत ही सुन्दर भाव लिए है ये रचना, और एक सवाल भी खड़ा कर दिया है!

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

in shabdon ke aagen ab koi shabd nahin hai.... kam-se-kam mere paas.

hem pandey ने कहा…

भले ही षडयंत्र रच लें, लेकिन शब्द कभी मरते नहीं.शब्द की शक्ति उसके भावों में है.

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

sandhya ji, bahut hi behatreen abhvykti.sachjabshbd mrit ho jate hai tolagata hai insaan aur insaaniyatbhi saath chhodne lagate hai.sachchai liye hui sundar prastuti.
poonam

कविता रावत ने कहा…

चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे
....behtreen prastuti.....

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Satya Vachan!

JAGDISH BALI ने कहा…

अच्छा लगा ! शब्द की भी संसकृति होती है ! शब्द को समझ्ना माने इसे ज़िन्दा रखना !

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!

बेनामी ने कहा…

bahut khub rachna....
sahi baat hai..
aadmi chup nahi reh sakta....
regards
http://i555.blogspot.com/

Asha Joglekar ने कहा…

और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

शब्द और इन्सान के रिस्ते का इतना गहरा विश्लेषण,
बहुत सुंदर संध्या जी ।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है ! इन्सान को शब्द की और शब्दों को इन्सान की ज़रुरत हमेशा रही है और रहेगी ... अपने विचार प्रकट करने का यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण जरिया है ... इसलिए इसेनकार नहीं सकते !

Akanksha Yadav ने कहा…

शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

...बहुत खूब लिखा अपने...शायद सच भी यही है...सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई !!

Smart Indian ने कहा…

शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

वाह! क्या बात कही है!

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

sundar rachna
abhar....................

Urmi ने कहा…

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! लाजवाब !

प्रदीप कांत ने कहा…

शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

एक दम सटीक बात

Unknown ने कहा…

फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है....!

कमाल की सोच है... सोचने पर मजबूर करती है... बधाई....!

कविता रावत ने कहा…

शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
जीवंत और सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ

दीपक 'मशाल' ने कहा…

आज मैंने जितनी भी पढ़ें उनमे सबसे बेहतरीन कविता संध्या मैम..

Dr. Ajay Shukla ने कहा…

फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है!
बहुत कम लोग बोलते हैं यहाँ और...
चीखता तो कोई नहीं के बराबर ...

bahut kuch kah diya apne!

संजय भास्‍कर ने कहा…

पहली बार आपके ब्लॉग की यात्रा की ...रोचक रही ..

संजय भास्‍कर ने कहा…

DHANYAWAAD SANDHYA DIDI JI BLOG PAR ANE AUR AUR MERA HOSLA BADHANE KE LIYE
UMEED HAI AGE BHI MERA HOSLA BADHAYEGE

संजय भास्‍कर ने कहा…

SANDHYA DIDI AAPNE BAHUT HI SUNDER LIKHA HAI........

Alpana Verma ने कहा…

ये आदमी ही है जो बार-बारशब्दों को मृत घोषित करने काषड्यंत्र रचता रहता है

..वाह !क्या खूब !
गहन भाव लिए उम्दा प्रस्तुति!

RAJESHWAR VASHISTHA ने कहा…

शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

शानदार अभिव्यक्ति......

Parul kanani ने कहा…

shbd ..tarkash ke teer hai! sundar rachna !

daanish ने कहा…

अद्भुत ...
लेकिन लाजवाब !!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

ये शब्द ही हैं जो इंसान को अपने मायाजाल में घेरे रहते हैं और इंसान न चाहते हुए भी इनका ताना बाना बुनता रहता है

nilesh mathur ने कहा…

आपकी इस रचना से प्रेरित हो कर मैंने भी कुछ पंक्तियाँ लिखी है,www.mathurnilesh.blogspot.com पर देखें!

shyam gupta ने कहा…

---शब्द भी अनादि है आदमी भी ( वस्तुत: आत्मा ही ’आदमी’ है--अनश्वर ) आदमी ही आवश्यकतानुसार बोलता , फ़ुसफ़ुसाता, चुपरहता, चीखता है; शब्द आदमी की शक्ति है।
---बहुत गहरी बात कही गयी है,कविता में-- बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी.

Akanksha Yadav ने कहा…

शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

...अद्भुत...शानदार प्रस्तुति..बधाई.

____________________________
'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

sachmuch chup nahi rah sakta aadami.
aadmi ki fitrat he yah, haalanki apni is bemisaal fitrat ko usane apne haatho hi khatm karne ka dussaahas bhi kiya he. shayd tabhi shadyantr banaataa he aadmi....
bahut achchi abhivyakti he aapki rachna..

कडुवासच ने कहा…

...अदभुत भाव ... प्रसंशनीय रचना !!!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह संध्या जी.... भावपूर्ण रचना... साधुवाद स्वीकारें..

विजय प्रकाश सिंह ने कहा…

अच्छी और गहराईपूर्ण रचना । बधाई ।

kshama ने कहा…

Vandanaji, katu ho lekin yahi sach hai..par kisiki cheenkh pe bhi dhyan na dena yah bhi aadmiki fitrat hai!

KK Yadav ने कहा…

और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं
...Bahut sahi kaha apne..sadhuvad !!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

जरुरत के हिसाब से षड्यंत्र रचता रहता है आदमी. अनावश्यक जरूरतें उसे मृत कर देती है.

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

bahut khoob :)


http://liberalflorence.blogspot.com/

Avinash Chandra ने कहा…

Wakai sshabd sath nahi chhodte, buri yaad kahein ya ishwar ka ashish

bahut achchhi rachna

रचना दीक्षित ने कहा…

और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!

बेहतरीन अभिव्यक्ति

इन्सान के पास तो आज वो शक्ति है की वो किसी को भी मृत घोषित कर रहा है चाहें शब्द हो या भावनाएं,मन हो या विचार

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सशक्त कविता.
अब यह आदमी पर है कि वह बोले चीखे या फुसफुसाए..
..वाह!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

कित्ती प्यारी कविता और प्यारा सा चित्र भी.
_____________
और हाँ, 'पाखी की दुनिया' में साइंस सिटी की सैर करने जरुर आइयेगा !

Neelam ने कहा…

I like your poem very much.

Unknown ने कहा…

चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे

और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं

अब यह आदमी पर है कि वह
बोले ...चीखे या फुसफुसाये

फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है!

Unknown ने कहा…

www.kuchkhaskhabar.blogspot.com

चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे