शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

दोराहे पर लड़कियाँ


दोराहे पर खड़ी लड़कियाँ
गिन -गिन कर कदम रखती हैं
कभी आगे-पीछे
कभी पीछे-आगे
कभी ये पुल से गुजरती हैं
कभी नदी में उतरने की हिमाकत करती हैं

ये अत्यन्त फुर्तीली और चौकन्नी होती हैं
किन्तु इन्हें दृष्टि-दोष रहता है
इन्हें अक्सर दूर और पास की चीजें नहीं दिखाई पड़तीं

ये विस्थापन के बीच
स्थापन से गुज़रती हैं
जीवन के स्वाद में कहीं ज्यादा नमक
कहीं ज्यादा मिर्च
... कहीं दोनो से खाली

दोराहे पर खड़ी लड़िकयाँ गणितज्ञ होती हैं
लेकिन कोई सवाल हल नहीं कर पातीं!
.................................................
चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
......................................................................................................

शनिवार, 29 नवंबर 2008

गोश्त बस


वह काला चील्ह...!!

क्या तुमने देखा नहीं उसे...
जाना नहीं...??


है बस काला...
सर से पाँव तक...
फैलाये अपने बीभत्स पंख काले
शून्य में मंडराता रहता है
इधर-उधर
गोश्त की आस में
आँखों को मटमटाता
अवसर की ताक में....


चाहिये उसे गोश्त बस
....लबालब खून से भरा
नर हो या मादा
शिशु हो नन्हा-सा
या कोई पालतु पशु ही


काला हो या उजला
हो लाल या मटमैला
उसे चाहिये गोश्त बस!

...................................................................

शनिवार, 8 नवंबर 2008

कुछ भी नहीं बदला

सन्दूक से पुराने ख़त निकालती हूँ
कुछ भी नहीं बदला...
छुअन
एहसास
संवेदना!

पच्चीस वर्षों के पुराने अतीत में
सिर्फ़
उन उँगलियों का साथ
छूट गया है...

.................................................................................

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008

राज ठाकरे के लिये

कुम्हार ने मिट्टी के ढेलों को पहले तोड़ा
फिर उन्हें बारीक किया और पानी डाल कर भिगोया
मिट्टी को पैरों से खूब रौंदने के बाद
उसे हाथों से कमाया

मिट्टी घुल मिल कर एक हो गयी
बिलकुल गूँथे हुए आटे की तरह

कमाई हुई मिट्टी को कुम्हार ने चाक पर रखा
एक डंडे के सहारे चाक को गति दी
इतनी गति की वह हवा से बातें करने लगा

चाक पर रखी मिट्टी को कुम्हार के कुशल हाथ
आकृतियां देने लगे
मिटटी सृजन के उपक्रम में भिन्न भिन्न
आकृतियों में ढलती गयी
पास ही रेत का ढेर पड़ा था...

कुम्हार नहीं बनाता रेत से बर्तन
रेत के कण आपस में कभी
पैवस्त नहीं हो सकते !

......................................................................................................


शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008

वह संसार नहीं मिलेगा

और एक रोज़ कोई भी सामान
अपनी जगह पर नहीं मिलेगा

एक रोज़ जब लौटोगे घर
और....वह संसार नही मिलेगा
वह मिटटी का चूल्हा
और लीपा हुआ आंगन नहीं होगा

लौटोगे .....और
गौशाले में एक दुकान खुलने को तैयार मिलेगी

घर की सबसे बूढ़ी स्त्री के लिये
पिछवाड़े का सीलन और अंधेरे में डूबा कोई कमरा होगा

जिस किस्सागो मजदूर ने अपनी गृहस्थी छोड़ कर
तुम्हारे यहां अपनी ज़िन्दगी गुज़ार दी
उसे देर रात तक बकबक बंद करने
और जल्दी सो जाने की हिदायत दी जायेगी

देखना-
विचार और संवेदना पर नये कपड़े होंगे!

लौट कर आओगे
और अपनों के बीच अपने कपड़ो
और जूतो से पहचाने जाओगे...!
वहां वह संसार नहीं मिलेगा !!

........................................................

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008

एक गैर दुनियादार शख्स की मृत्यु पर एक संक्षिप्त विवरण़......

एक विडम्बना ही है और इसे गैर दुनियादारी ही कहा जाना चाहिये
जब शहर में हत्याओं का दौर था.....उसके चेहरे पर शिकन नहीं थी
रातें हिंसक हो गयी थीं और वह चैन से सोता देखा गया

यह वह समय था जब किसी भी दुकान का शटर
उठाया जा रहा था आधी रात को और हाथ
असहाय मालूम पड़ते थे

सबसे महत्वपूर्ण पक्ष उसके जीवन का यह है कि वह
बोलता हुआ कम देखा गया था

“ दुनिया में किसी की उपस्थिति का कोई ख़ास
महत्व नहीं ”-
एक दिन चैराहे पर
कुछ भिन्नाई हुई मनोदशा में बकता पाया गया था

उसकी दिनचर्या अपनी रहस्यमयता की वजह से अबूझ
किस्म की थी लेकिन वह पिछले दिनों अपनी
खराब हो गई बिजली और कई रोज़ से खराब पड़े
सामने के हैण्डपम्प के लिये चिन्तित देखा गया था

उसे पुलिस की गाड़ी में बजने वाले सायरनों का ख़ौफ़
नहीं था...मदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने में भी उसकी
दिलचस्पी कभी देखी नहीं गई

राजनीति पर चर्चा वह कामचोरों का शगल मानता था

यहां तक कि इन्दिरा गांधी के बेटे की हुई मृत्यु को वह
विमान दुघर्टना की वजह में बदल कर नही देखता था

अपनी मौत मरेंगे सब!!!
उस अकेले और गैर दुनियादार शख़्स की राय थी

जब एक दिन तेज़ बारिश हो रही थी
बच्चे, जवान शहर से कुछ बाहर एक उलट गई बस को
देखने के लिये छतरी लिये भाग रहे थे
वह अकेला और

जिसे गैर दुनियादार कहा गया था,
शख़्स इसी बीच रात के तीसरे पहर को मर गया

तीन दिन पहले उसकी बिजली ठीक हो गई थी
और जैसा कि निश्चित ही था कि घर के सामने वाले
हैण्डपम्प को दो या तीन दिनों के भीतर
विभागवाले ठीक कर जाते

उस अकेले और गैर दुनियादार शख़्स का भी
मन्तव्य था कि मृत्यु किसी का इन्तज़ार नहीं करती


पर जो निश्चित जैसा था और इस पर मुहल्लेवालों की
बात भी सच निकली
उसका शव बहुत कठिन तरीके से
और मोड़ कर उसके दरवाजे़ के बाद की
सँकरी गली से निकला!

.................................................................................

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2008

उस स्त्री के बारे में

करवट बदल कर सो गई
उस स्त्री के बारे में तुम्हे कुछ नहीं कहना!

जिसके बारे में तुमने कहा था
उसकी त्वचा का रंग सूर्य की पहली किरण से
मिलता है

उसके खू़न में
पूर्वजों के बनाये सबसे पुराने कुएँ का जल है

और जिसके भीतर
इस धरती के सबसे बड़े जंगल की
निर्जनता है

जिसकी आँखों में तुम्हें एक पुरानी इमारत का
अकेलापन दिखा था
और....जिसे तुम बाँटना चाहते थे
जो... एक लम्बे गलियारे वाले
सूने घर के दरवाजे पर खड़ी
तुम्हारी राह तकती थी!

........................................................ ं